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नाव हादसे में चली गई जान, अधिकारी कह रहे शव लाइए तब मिलेगी मदद

नाव हादसे में जान जाने के बाद शव नदी की धारा में बह गया था। शव न मिलने के कारण अधिकारी पीडि़त परिजनों को सरकारी सहायता भी नहीं दे रहे हैं।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Tue, 13 Nov 2018 05:08 PM (IST)Updated: Wed, 14 Nov 2018 10:06 AM (IST)
नाव हादसे में चली गई जान, अधिकारी कह रहे शव लाइए तब मिलेगी मदद

बस्ती, ( कृष्ण दत्त द्विवेदी)। करीब एक वर्ष पूर्व खेती कर सरयू नदी उस पार से लौट रहे 25 किसानों से भरी नाव पारा गांव के पास नदी में पलट गई थी। 21 किसानों को तो मछुआरों ने बचा लिया लेकिन चार किसान लापता हो गए। पिपरी गांव के दो किसान छोटेलाल और सूरज तथा पारा गांव के माया राम और बीहड़ लापता हो गए। घटना के चार दिन बाद 15 किलोमीटर दूर कलवारी क्षेत्र के टांडा पुल के पास नाव मिली थी। आठ दिन बाद  किसान बीहड़ का शव मिला। शेष किसानों का आज तक पता नहीं चल सका। परिजन आज भी सरकारी मदद के इंतजार में टकटकी लगाए हैं जबकि शव का न मिलना सरकारी इमदाद की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बताया जा रहा है।

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पारा गांव निवासी बीहड़ उसी नाव में सवार था और खेत की सिंचाई कर शेष किसानों के साथ लौट रहा था। आठ दिन बाद शव मिलने के बाद परिजनों को दो लाख रुपये की सरकारी सहायता मिली लेकिन उनकी पत्नी और बच्चों को विधवा पेंशन, किसान बीमा जैसी योजनाओं का लाभ नहीं मिल सका। पारा गांव के ही मायाराम के परिजनों की स्थिति काफी दयनीय है। मायाराम के तीन बच्चे जिसमें दो लड़कियां और एक लड़का है मायाराम अकेले कमाते थे जिससे उनका घर परिवार चलता था।

मायाराम के मरने के बाद उनकी पत्नी को दूसरों के घर मजदूरी करने जाना पड़ता है। बेटा भी मजदूरी कर अपना और अपनी बहन की पढ़ाई का खर्च निकालता है। वह बारहवीं कक्षा का छात्र है। इनके पास खेती के नाम पर एक बिस्वा भी जमीन नहीं है। पिपरी निवासी छोटेलाल भी उस दिन उसी नाव में सवार थे। उनका भी आज तक कुछ पता नहीं चला। छोटे लाल के चार बच्चे हैं। एक बेटी की शादी हो चुकी है। शेष तीनों बच्चे मजदूरी करते हैं। मायाराम की पत्नी मालती ने बताया कि तत्कालीन जिलाधिकारी ने आश्वासन दिया था लेकिन हुआ कुछ नहीं। बच्चों की पढ़ाई बंद हो गई। हालत यह थी कि मायाराम की तेरहवीं के लिए जेवर तक बेचना पड़ा था। पिपरपाती के सुरजीत अपने सात भाइयों में चौथे नंबर का था नवीं कक्षा में पढ़ता था। पिता के काम में हाथ बटाता था। वह भी उस दिन नदी की धारा में समा गया।

दावपेंच में फंस गई सरकारी मदद

जिन तीन किसानों के परिजनों को आज तक सरकारी सहायता नहीं मिली है उसका मूल कारण उनके शव का न मिलना है। अब यह विडंबना ही कई जाएगी कि सभी लोग जान रहे हैं कि तीनों लोग नाव हादसे में लापता हुए थे। उसके बाद से आज तक उनके परिजनों को न हो कोई मदद मिली और न ही मदद पहुंंचाने का कोई रास्ता ही निकाला गया।

शव मिलेगा तभी मिलेगी मदद

हरैया के एसडीएम शिव प्रताप शुक्ला का कहना है कि आपदा राहत पाने के लिए शव का मिलना  आवश्यक है क्योंकि बिना पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सहायता राशि नहीं मिल सकती है। एक किसान का शव मिलने के बाद उसके परिजनों को सहायता दे दी गई थी। अन्य लोगों के परिजनों को सहायता देने के लिए जब तक शासन से निर्देश नहीं आएगा तब तक कुछ नहीं किया सकता। 


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