किडनी की दुश्मन है बीपी व डायबिटीज, बचने के लिए यह करें उपाय
आरामतलब जीवनशैली बढ़ते मानसिक तनाव व अनियंत्रित खानपान की वजह से बढ़ती डायबिटीज व रक्तचाप के कारण किडनी के मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।
गोरखपुर, जेएनएन। आजमगढ़ निवासी 35 वर्षीय युवक को पांच साल पहले जांच के दौरान डायबिटीज पकड़ में आई। एक साल पहले चेहरे व पैरों में सूजन की शिकायत शुरू हुई। जांच कराने पर पता चला कि किडनी पर असर पड़ चुका है। साल बीतते-बीतते डायलिसिस की नौबत आ गई है। देवरिया निवासी 40 वर्षीय युवक को दो साल पहले जांच के दौरान उच्च रक्तचाप का पता चला। इसके बावजूद उन्होंने नियमित दवाएं नहीं लीं जिससे बीपी अनियंत्रित रहा। पंद्रह दिन पहले भूख कम लगने की शिकायत हुई। करीब चार दिन पहले सांस फूलनी शुरू हुई। डाक्टर को दिखाया गया। जांच कराने पर पता चला कि किडनी खराब हो चुकी है। अब डायलिसिस ही सहारा है।
बीपी व डायबिटीज कारण
आरामतलब जीवनशैली, बढ़ते मानसिक तनाव व अनियंत्रित खानपान की वजह से बढ़ती डायबिटीज व रक्तचाप के कारण किडनी के मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। भारत की बात करें को करीब दस फीसद आबादी गुर्दे की बीमारी का शिकार है।
बढ़ रही डायलिसिस कराने वाले मरीजों की संख्या
पूर्वाचल में संख्या इससे कहीं अधिक है। गंभीर तो यह है कि जागरूकता के अभाव व कोई खास नहीं होने से बीमारी शुरू में पकड़ में नहीं आती। ज्यादातर मामलों में पता तब चलता है जब किडनी खराब हो चुकी होती है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज व जिला अस्पताल जैसे सरकारी अस्पतालों को छोड़ दें तो यहां डायलिसिस के लिए सिर्फ निजी अस्पतालों का ही सहारा है। निजी अस्पतालों में एक बार डायलिसिस कराने के डेढ़ से दो हजार रुपये लगते हैं। गंभीर मरीजों को महीने में दस बार तक डायलिसिस करानी पड़ती है। गोरखपुर शहर के निजी अस्पतालों में हर महीने पांच से छह सौ मरीजों की डायलिसिस होती है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि किडनी के जितने मरीज डायलिसिस कराते हैं उससे अधिक मरीज ऐसे हैं जिनको डायलिसिस की जरूरत तो होती है पर धन के अभाव में डायलिसिस तो दूर जरूरी दवाएं तक नहीं खरीद पाते।
यह है लक्षण
- सोकर उठने पर सुबह आंखों के ऊपर सूजन
- भूख कम लगना
- बार-बार उल्टी उच्च रक्तचाप
- कम उम्र में शरीर में सूजन
- रक्त की कमी
- सांस फूलना
- हड्डियों में दर्द
- पेशाब में परिवर्तन जैसे मूत्र झागदार होना
- रात में बार-बार पेशाब होना
- कम मात्र में पेशाब होना
- काले या लाल रंग का मूत्र आना
- किडनी में खराबी से जल्द थकान होने लगता है।
समय-समय पर कराएं जांच
नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. आनंद बंका के अनुसार बिना डाक्टर की सलाह के दवाएं लेने से बचना चाहिए। पेशाब को अधिक देर तक न रोकें और नमक का सेवन कम करें। नियमित व्यायाम करें, समय-समय पर जांच कराते रहें और धूम्रपान से बचें। ज्यादातर लोग बिना डाक्टर की सलाह के दर्द निवारक दवाओं का भी सेवन करते हैं जो किडनी पर असर डालती हैं। चूंकि शुरू में बीमारी के आसानी से पहचान में नहीं आते। जिससे अधिकतर लोगों में बीमारी बिगड़ जाती है। ऐसे सभी लोगों, खासतौर पर मधुमेह व बीपी के मरीजों को बीमारी को को लेकर सतर्क रहना चाहिए।
जीवन शैली नियमित करें
नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. विजय सिंह के अनुसार जीवनशैली के जरिए किडनी को स्वस्थ रखा जा सकता है। घटते शारीरिक श्रम, अनियंत्रित खानपान व फास्ट फूड के बढ़ते सेवन से जहां लोग मोटापे के शिकार हो रहे हैं वहीं कम उम्र में ही मधुमेह व उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां गिरफ्त में ले रहीं हैं। नियमित जांच से किडनी की बीमारी के बारे में समय से पता चल सकता है। सीरम क्रिएटनीन, मूत्र की जांच के साथ ही किडनी के अल्ट्रासाउंड से समय रहते रोग की जानकारी मिल सकती है।