गेहूं व धान की खेती छोड़ उगा रहे केला, बदल गई किस्मत Gorakhpur News
गोरखपुर में गेहूं व धान की परंपरागत खेती से जब खर्च चलना मुश्किल हो गया तो विजेंद्र ने केले की खेती शुरू कर दी। इससे प्रतिवर्ष प्रति एकड़ ढाई से तीन लाख रुपये की आय हो रही है।
गोरखपुर, जेएनएन। गेहूं व धान की परंपरागत खेती से जब खर्च चलना मुश्किल हो गया तो विजेंद्र ने केले की खेती शुरू कर दी। इससे प्रतिवर्ष प्रति एकड़ ढाई से तीन लाख रुपये की आय हो रही है। इनसे प्रेरणा लेकर गांव के चार और किसान केले की खेती कर रहे हैं। साथ ही युवाओं का भी झुकाव इस ओर हो रहा है।
53 वर्ष की अवस्था में शायद ही कोई व्यक्ति प्रयोग के लिए सोच सकता है, लेकिन ब्रह्मपुर ब्लाक क्षेत्र के ग्राम सभा पुरनहां निवासी विजेंद्र पांडेय ने ऐसा ही कुछ कर दिखाया है। वे पूरे जीवन गेहूं, धान व मक्का की खेती करते रहे, लेकिन चार वर्ष सेकेले की कर रहे हैं। इनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो गई है। अन्य किसानों के अलावा इनके छोटे पुत्र शिवेंद्र पांडेय भी पिता की राह पर चल रहे हैं।
जुलाई के प्रथम सप्ताह में होती है केले की रोपाई
विजेंद्र बताते हैं कि जुलाई के प्रथम सप्ताह में केले की रोपाई होती है। खेत में जगह-जगह गड्ढे बनाए जाते हैं। उसमें गोबर की खाद, डीएपी, पोटाश, फ्यूराडाल का घोल बनाकर डाला जाता है। चार दिन छोडऩे के बाद उस गड्ढे में पौधे की रोपाई की जाती है। एक वर्ष बाद फसल तैयार हो जाती है। रुद्रपुरके उत्थान संस्था ने दिशा दी है। बता दें की विजेंद्र की शिक्षा इंटरमीडिएट तक है।
एक बार की रोपाई से दो साल तक मिलती है फसल
विजेंद्र बताते हैं कि एक एकड़ केले की खेती तैयार करने में 60 से 70 हजार रुपये की पूंजी लगती है। मात्र एक बार रोपाई करने के बाद दूसरे वर्ष रोपाई की जरूरत नहीं पड़ती और दो वर्ष तक पैदावार होती रहती है।
पहले वर्ष ढाई से तीन लाख की होती है आय
पहले वर्ष में ढाई से तीन लाख और दूसरे वर्ष में ढाई लाख तक आय प्राप्त होती है। दूसरे वर्ष लागत भी घटकर तीस से पैतीस हजार रुपये हो जाती है।
यहां से मिली केले की खेती की राह
देवरिया जिले के रुद्रपुर तहसील के ग्राम अकटहा में टाटा द्वारा संचालित उत्थान संस्था के प्रोत्साहन से विजेंद्र को केले की खेती की सलाह तथा सुझाव मिले। यही नहीं पहली बार खेती के लिए निश्शुल्क बीज एवं दवा भी संस्था ने उपलब्ध कराई थी।
इन किसानों ने भी शुरू की खेती
स्थानीय किसान भीम पांडेय, सत्यानंद तिवारी, सुभाष चंद पांडेय एवं शिव प्रसाद ने भी बिजेंद्र की अ'छी होती आर्थिक स्थिति को देखकर इनसे सलाह व सुझाव लेकर केले की खेती प्रारंभ की। विजेंद्र बताते हैं कि हम लोग कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार के वैज्ञानिक डॉ.एसपी सिंह से समय- समय पर सलाह लेते रहते हैं।
व्यापारी खरीद लेते हैं केला
खेत से ही व्यापारी केले की फसल खरीद कर ले जाते हैं। इससे खर्चे भी बच जाते हैं और हमे बाजार में नहीं खोजना पड़ता है।