लगाते रहे गुहार, नहीं थामा किसी ने हाथ और छूट गई ट्रेन
गोरखपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म दो दिव्यांगों की ट्रेन इसलिए छूट गई कि उनको कोई बैठाने वाला नहीं था। वह प्रतियोगी परीक्षा के लिए जा रहे थे।
गोरखपुर, जेएनएन। प्लेटफार्म नंबर दो पर गोरखधाम सुपरफास्ट ट्रेन की जनरल बोगियों में चढ़ने के लिए लोग धक्का-मुक्की कर रहे थे। गेट पर भीड़ होने के चलते कुछ यात्री टॉयलेट की खिड़की तोड़ अंदर घुस गए। गेट पर लोग बैठे थे पैर रखने की जगह नहीं थी। महिलाएं और बच्चे भटक रहे थे। इस भीड़ में दिव्यांगों को कोई पूछने वाला नहीं था। दृष्टिबाधित राकेश और धर्मेंद्र छड़ी लिए ट्रेन की एक से दूसरे छोर तक चक्कर लगा रहे थे। बीच में वे सुरक्षा बलों और यात्रियों से बैठाने की गुहार लगाते रहे, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। ट्रेन चली गई। दोनों मायूस ठगे से खड़े रह गए।
ट्रेन की जब पहली सिटी बजी
ट्रेन की पहली सिटी बजी तो दृष्टिबाधित राकेश और धर्मेद्र घबराकर अंतिम बोगी में मौजूद गार्ड के पास पहुंच गए। दिव्यांग राजकुमार पहले से मौजूद थे। तीनों ने गार्ड से ट्रेन में बैठाने की गुहार लगाई, लेकिन उन्होंने ध्यान नहीं दिया। पास खड़ी जीआरपी ने भी नोटिस नहीं ली। एक सब इंस्पेक्टर ने तो फटकार कर भगा दिया। निराश तीनों दिव्यांग किनारे खड़े हो गए। कुरेंदने पर उन्होंने बताया कि वे डेढ़ घंटे से दिव्यांग कोच खोज रहे हैं। पता चला है कि दिव्यांग कोच नहीं लग रहे। भीड़ के चलते वे बोगियों में नहीं बैठ पाए हैं। किसी ने सहयोग भी नहीं किया है।
दिल्ली जा रहे थे परीक्षा देने
कुशीनगर निवासी दोनों दृष्टिबाधित ने बताया कि वे एमए बीएड हैं। प्रतियोगी परीक्षा देने के लिए दिल्ली जाना है। इसके साथ ही वे चुप हो गए। लगा जैसे उनकी सूनी आंखों में सारा आसमान समा गया है। राकेश और धर्मेद्र की तरह रोजाना दिव्यांग यात्री स्टेशन पहुंचते हैं और जगह नहीं मिलने पर निराश होकर घर लौट जाते हैं। अब तो यह रोज की कहानी हो गई है। न रेलवे प्रशासन सुध ले रहा और न सुरक्षा बल दिव्यांग और महिलाओं का सहयोग कर रहे हैं। अंतिम जनरल बोगी में महिलाओं के लिए आरक्षित 50 सीट पर पुरुष कब्जा जमा ले रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि कब तक दिव्यांग और महिला यात्री ठगे जाते रहेंगे। कब तक एक-एक सीट के लिए लोग धक्के खाते रहेंगे। एक दिन पहले ही भीड़ में एक यात्री जैतराम का सिर फट गया।