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देवरिया के पैना गांव में हर कदम पर बलिदान और जौहर की निशानी

बरहज तहसील क्षेत्र के इस गांव में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 395 ग्रामीण लड़ते हुए शहीद हुए थे। अंग्रेजी सेना यहां के विद्रोहियों को सबक सिखाने के लिए 31 जुलाई 1857 को गांव पहुंची और आग लगा दी।

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Feb 2021 06:40 AM (IST)Updated: Fri, 26 Feb 2021 06:40 AM (IST)
देवरिया के पैना गांव में हर कदम पर बलिदान और जौहर की निशानी
देवरिया के पैना गांव में हर कदम पर बलिदान और जौहर की निशानी

श्रवण गुप्त, देवरिया: स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रिम मोर्चे पर रहा सरयू किनारे बसा गांव पैना महिलाओं के जौहर की कहानी कहता है। यहां की 100 महिलाओं ने सतीत्व की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी थी। उनकी याद में बने एक दर्जन मंदिर आज भी उनकी वीर गाथा को बताते हैं।

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बरहज तहसील क्षेत्र के इस गांव में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 395 ग्रामीण लड़ते हुए शहीद हुए थे। अंग्रेजी सेना यहां के विद्रोहियों को सबक सिखाने के लिए 31 जुलाई 1857 को गांव पहुंची और आग लगा दी। सतीत्व की रक्षा के लिए सौ वीरांगनाओं ने सरयू नदी में कूदकर प्राण दे दिया। कई ने जौहर ले लिया। सरयू तट सतीहड़ा घाट पर दर्जनों सती मंदिर जौहर का प्रतीक हैं। ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और पैना के स्वदेशी सेना के बीच युद्ध हुआ था। गांव को उत्तर और दक्षिण दोनों तरफ से घेरकर तोप से गोले बरसाए गए। अंग्रेजी सेना ने गांव में प्रवेश कर लूट पाट करना प्रारंभ किया। महिलाओं को अपहृत करने की कोशिश की। यह देख महिलाओं ने सरयू में जलसमाधि व अग्नि में जलकर सतीबढ़ के स्थान पर अपने को बलिदान कर दिया। ये हैं पैना के बलिदानी

रतना सती, सुदामा कुंवरी सती, बसन्ता सती, राधिका सती, अमीना सती, बउधा सती, डोमना सती के अलावा लच्छन सिंह, पल्टन सिंह, गुरूदयाल सिंह, धज्जू सिंह (क्रांति के दमन की पराकाष्ठा के कारण घर से चले गये, लौटे नहीं), करिया सिंह, तिलक सिंह, विजाधर सिंह, विशेशर सिंह, फेंकू सिंह, सिजोर सिंह, दीनदयाल सिंह, बसावन सिंह, शिवलाल सिंह, राम किकर सिंह, सालिग्राम सिंह, शिवव्रत सिंह, देवी दयाल सिंह, डोमन सिंह, भोंदू राम, सर्फराज अली, उमराव मिया, शीतल सिंह, बेनी माधव सिंह, अनमोल सिंह, रामदरश सिंह, गती सिंह, राम जनक सिंह, जतन सिंह, रामप्रसाद सिंह। स्वतंत्रता संग्राम में रहा है उल्लेखनीय योगदान

पैना के डा.वीके सिंह ने बताया कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में पैना का उल्लेखनीय योगदान रहा है। यहां के महिलाओं, पुरुषों के शौर्य और बलिदान उज्ज्वल हैं। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का यह इतिहास आजादी के बाद भी उपेक्षित रहा। इस युद्ध के इतिहास पर शोध की जरूरत है।

शिक्षक यशवंत कुमार सिंह ने बताया कि जब तोपों के हमले से गांव जल उठा और बात अस्मत पर आई तो सतीत्व की रक्षा के लिए महिलाओं ने सामूहिक रूप से अग्नि में जौहर किया। नदी के रास्ते अपहरण कर ले जाने पर सरयू में कूदकर प्राणों की आहुति दी। इसीलिए उस जगह का नाम सतीहड़ा पड़ा। यहां आज भी ग्रामीण सती मइया का पूजन-अर्चन करते हैं। उनके त्याग, बलिदान से प्रेरणा लेते हैं।


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