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सउदी के एक नियम ने तोड़ दिए हजारों भारतीयों के सपने Gorakhpur News

सउदी देशों के एक नियम ने यूपी के सैकड़ों लोगों के सपनों को तोड़ दिया।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 19 Jul 2020 09:00 AM (IST)Updated: Sun, 19 Jul 2020 12:26 PM (IST)
सउदी के एक नियम ने तोड़ दिए हजारों भारतीयों के सपने Gorakhpur News
सउदी के एक नियम ने तोड़ दिए हजारों भारतीयों के सपने Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। ज्यादा पैसे कमाने की चाहत में अपनों से दूर जा रहे थे युवा ग्राम महुवारी निवासी शिव कुमार को अपने शहर में मनमाफिक रोजगार नहीं मिला, तो एजेंट के जरिये ट्रेलर चालक के रूप सऊदी अरब के रियाद चले गए। कंपनी रहने-खाने के अलावा 1500 रियाल (करीब 30 हजार भारतीय रुपये) वेतन देती थी। ओवरटाइम का भी पैसा मिलता था। महज तीन साल में उनके परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर गई। वह पिछले साल दिसंबर में छुट्टी पर घर आए, तो लॉकडाउन की वजह से दोबारा जा नहीं सके। बकौल शिव कुमार, कंपनी ने हर तरह की सहूलियत मुहैया कराई थी, इसलिए कोई परेशानी नहीं हुई। रसूलपुर के अब्दुल हक सऊदी अरब में सेल्समैन हैं। उनके घर में खुशहाली भी आ गई है, लेकिन पांच साल से वह घर नहीं लौटे हैं। अब्दुल इस बार ईद में घर आने वाले थे। कोरोना के चलते नहीं आ सके। स्वजन उनकी सेहत को लेकर परेशान हैं। पिता अब्दुल रशीद कहते हैं, बेटे से कई बार नौकरी छोड़ घर लौटने को कहा, लेकिन वह कहता है, कुछ दिन और कमा लूं।

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दुर्व्‍यवहार और वेतन कटौती का भी करना पड़ रहा सामना

पिपरापुर निवासी गुफरान यहां स्कूल वाहन चलाते थे। सात हजार वेतन, वह भी समय से नहीं मिलता था। वह मक्का जाकर स्कूल वैन चलाने लगे। दो हजार दरहम (40 हजार भारतीय रुपये) वेतन के अलावा सारी सुविधाएं मिलती हैं। बीते चार वर्ष में कई दोस्तों को भी वहां बुलाया है। पिता सुलेमान अहमद कहते हैं, हमारी आर्थिक स्थिति बेहतर हो गई है, इसलिए चाहते हैं कि बेटा स्वदेश लौट आए। 17 जुलाई को दुबई से लौट रहे नौतनवां के विशाल ने बताया कि कोरोना से बहुत हद तक काम प्रभावित है। खाड़ी देशों में काम की अब पहले जैसी स्थिति नहीं रहेगी। लाखों कामगार वापस लौटना चाहते हैं।

जो युवा वीजा स्‍टैंपिंग और एयर टिकट के लिए ऑफिस आते हैं, वह कम वक्त में ज्यादा पैसे कमाने की चाहत रखते हैं। ज्यादातर यही कहते हैं कि पैसे कमाने के लिए अपनों को छोड़कर इतनी दूर जा रहे हैं। बहुत सी कंपनियों में रहना-खाना मुफ्त होता है। वेतन का पूरा पैसा बच जाता है। दो साल में जब दो महीने की छुट्टी पर घर लौटते हैं, तो कंपनी आने-जाने का खर्च भी देती है। - अहमद माज, मैनेजिंग डायरेक्टर, रॉयल टूर एंड ट्रेवलर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड

सेहत को लेकर परेशान हैं परिजन

खाड़ी देशों में रह रहे सैकड़ों कामगारों की कोरोना से मौत हो गई है। ऐसे में वहाँ काम कर रहे अपनों की सेहत को लेकर घरवाले परेशान हैं। बरगदवा निवासी रामप्रकाश कुवैत की एक कंपनी में काम करते हैं। दो सहयोगियों के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद रामप्रकाश के साथ हैं। वह कई बार रो-रोकर होमवालों से बुलाने की मांग कर चुके हैं। सऊदी अरब के मदीना में नौकरी कर रहे दरियाचक के मोहम्मद अली भी कोरोना के कारण घर लौटना चाहते हैं, जबकि उनके पिता भी साथ में हैं। मोहम्मद अली ने बताया कि इतने लोगों को बीमार और मरते देखा गया है कि आंखों के सामने सिर्फ मौत दिखाई देती है। हालात देखकर ऐसा नहीं लगता कि जिंदा अपने वतन रेफरी होगीगी।


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