गोरखपुर में एक दिव्यांग को 12 साल बाद मिली जीत, जानिए संघर्ष की कहानी
पोस्ट आफिस में क्लर्क रहे नेत्र दिव्यांग श्रीप्रकाश शुक्ल 12 साल की लड़ाई जीत गए। सौ फीसद दिव्यांगता के बाद भी श्रीप्रकाश का गृहकर माफ नहीं किया जा रहा था। मुख्यमंत्री के जनसुनवाई पोर्टल के माध्यम से मामला नगर आयुक्त अविनाश सिंह के संज्ञान में आया।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता : पोस्ट आफिस में क्लर्क रहे नेत्र दिव्यांग श्रीप्रकाश शुक्ल 12 साल की लड़ाई जीत गए। सौ फीसद दिव्यांगता के बाद भी श्रीप्रकाश का गृहकर माफ नहीं किया जा रहा था। मुख्यमंत्री के जनसुनवाई पोर्टल के माध्यम से मामला नगर आयुक्त अविनाश सिंह के संज्ञान में आया। नगर आयुक्त ने पूरा प्रकरण समझा। उन्होंने अपनी गाड़ी भेजकर श्रीप्रकाश शुक्ल को कार्यालय बुलाया और रात आठ बजे प्रमाण पत्र जारी कराया। श्रीप्रकाश की पत्नी अन्नो ने अप्रैल में कोरोना संक्रमण से दम तोड़ा था। उनका मृत्यु प्रमाण पत्र भी तत्काल जारी किया गया।
2009 में नेत्र दिव्यांग हो गए श्रीप्रकाश शुक्ल
गोपलापुर निवासी श्रीप्रकाश शुक्ल वर्ष 2009 में नेत्र दिव्यांग हो गए। उनकी दोनों आंखों से दिखना बंद हो गया। काफी इलाज के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ। श्रीप्रकाश ने बताया कि उन्होंने दिव्यांगों के लिए सरकारी योजना की जानकारी लेनी शुरू की तो पता चला कि गृहकर भी दिव्यांगता के अनुसार माफ होती है। यानी जितनी दिव्यांगता है, गृहकर में उतनी छूट मिलती है। उस समय अपने कार्यालय के साथी के साथ नगर निगम पहुंचा तो किसी ने ध्यान नहीं दिया। हर बार कुछ दिन बाद आने की बात कहकर लौटा दिया जाता था। अनगिनत बार नगर निगम आया लेकिन गृहकर नहीं माफ हुआ।
जनसुनवाई पोर्टल पर की थी शिकायत
श्रीप्रकाश के बेटे योगेश शुक्ल ने बताया कि पिताजी के कहने पर जनसुनवाई पोर्टल पर भी कई बार शिकायत की थी। नगर आयुक्त अविनाश सिंह जनसुनवाई पोर्टल पर आ रही शिकायतों के समाधान की समीक्षा कर रहे थे। इस बीच उनकी निगाह गृहकर माफ किए जाने को लेकर मिली शिकायत पर गई। उन्होंने अफसरों को बुलाकर प्रकरण समझा।
अफसरों ने अपने पास से जमा किया ब्याज
श्रीप्रकाश शुक्ल के मकान पर 12 साल में गृहकर के रूप में तकरीबन 66 सौ रुपये का बिल हो गया था। इनमें छह हजार गृहकर और बाकी रुपये धनराशि पर ब्याज के रूप में लगे थे। नगर आयुक्त ने गृहकर को माफ किया और ब्याज की धनराशि अफसरों ने अपने पास से नगर निगम के खाते में जमा कर दी।
आंख वालों की कोई नहीं सुनता, हम तो नेत्र दिव्यांग हैं
प्रमाण पत्र हाथ में आया तो श्रीप्रकाश शुक्ल भावुक हो गए। कहा कि, 'आंख वालों की जब कोई नहीं सुनता तो मैं तो नेत्र दिव्यांग था लेकिन नगर आयुक्त साहब बहुत अच्छे हैं। मैंने भी नौकरी की पर कभी ऐसा नहीं हुआ कि कोई अफसर परेशानी व्यक्ति को घर से अपनी गाड़ी से बुलाकर उसकी समस्या का समाधान कराए। ऐसे अफसरों को हर जगह होना चाहिए।'