मिर्गी, फालिज की वजह बन सकती है सिर की चोट
गोरखपुर भागदौड़ व तनाव भरी जिन्दगी में सिर की चोट के मामलों में तेजी से इजाफा हो रहा है। रोजाना बड़
गोरखपुर
भागदौड़ व तनाव भरी जिन्दगी में सिर की चोट के मामलों में तेजी से इजाफा हो रहा है। रोजाना बड़ी संख्या में लोग मार्ग दुर्घटनाओं व अन्य कारणों सिर की चोट के शिकार हो जाते हैं जिसमें से भारी तादाद में मौतें भी होती हैं। सिर्फ गोरखपुर मेडिकल कालेज में पूर्वाचल के विभिन्न इलाकों से हर साल साढे़ तीन से चार हजार लोग इलाज के लिए आते हैं। लेकिन सिर की चोट के बाद तत्काल इलाज से जहां मौतों की तादाद कम की जा सकती है वहीं कई परेशानियों से भी बचा जा सकता है।
सिर की चोट के खतरों के प्रति आम जनता को अगाह करने के लिए ही हर साल बीस मार्च को वर्ल्ड हेड इंजरी अवेयरनेस डे मनाया जाता है। सिर की चोट देश में विभिन्न बीमारियों व अन्य वजहों से होने वाली मौतों का छठवां बड़ा कारण है। वैसे तो सिर में चोट लगने की वजहे कई हो सकती हैं लेकिन आमतौर पर यह मार्ग दुर्घटनाओं के कारण अधिक लगती है। न्यूरोसर्जन डा. मुकेश शुक्ला के अनुसार सड़क दुर्घटनाओं में लगी साठ फीसद चोटें गम्भीर होती हैं। सिर की चोट के मरीजों में विकलांगता व मौतों की तादाद सबसे अधिक होती है। बाहर से साधारण दिखने वाली चोट भी कई बार अन्दर से काफी गहरी हो सकती है। ऐसी चोट कई बार घातक हो सकती है। लापरवाही बरतने व इलाज नहीं कराने से ऐसे लोगों को मिर्गी, पागलपन या फालिज की शिकायत हो सकती है। यदि सिर की चोट के बाद बाद सिर में दर्द हो, उल्टी आए, अधिक सुस्ती हो, मुंह, नाक या कान के रास्ते खून आए, झटके या चक्कर आने की शिकायत हो या फिर देखने में परेशानी हो तो तत्काल चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए।
न्यूरोसर्जन डा. अविजित सरकारी बताते हैं कि कई बार देखा गया है कि पचास या इससे अधिक उम्र के लोगों में सिर की चोट बाद में उभर कर सामने आती है। ऐसे लोगों में चोट लगने के तीसरे या छठे हफ्ते में परेशानी हो सकती है। इसर तरह के लोगों में ऐसा कोई लक्षण दिखने पर तत्काल इलाज कराना चाहिए। दुर्घटनाओं में घायल लोगों का इलाज तत्काल शुरू करा देना चाहिए। अस्पताल ले जाते समय मरीज को करवट के बल लिटाना चाहिए। मरीज का गर्दन पीछे की ओर होना चाहिए जिससे सांस लेने में दिक्कत न हो। यदि खून अधिक बह रहा हो तो साफ कपड़ा बांध कर खून रोका जाना चाहिए।
बेहतर है कि सिर की चोट से बचाव के लिए सावधानी बरती जाय। छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर इससे आसानी से बचा जा सकता है। इसके लिए चार पहिया वाहन चलाते समय सीट बेल्ट बांधना चाहिए, दो पहिया वाहन चलाते समय हेलमेट पहनना चाहिए। नशे की हालत में वाहन नहीं चलाना चाहिए। बच्चों को स्कूलों में ही यातायात नियमों के बारे में बताया जाना चाहिए।