हाईप्रोफाइल पढ़ाई पर भारी बस्ता
गोरखपुर : कान्वेंट स्कूलों की मनमानी 'बचपन' पर भारी पड़ने लगी है। न कोई पूछने वाला है और न टोकने वाला
गोरखपुर : कान्वेंट स्कूलों की मनमानी 'बचपन' पर भारी पड़ने लगी है। न कोई पूछने वाला है और न टोकने वाला। स्कूल प्रबंधन केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद के दिशा-निर्देशों का भी नोटिस नहीं ले रहे। बेसिक शिक्षा विभाग भी अन्य बोर्ड का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेता है। अब तो कान्वेंट विद्यालय हाई प्रोफाइल पढ़ाई का दिखावा करने के उद्देश्य से अपना पाठ्यक्रम लागू करने लगे हैं। बोर्ड की निर्धारित किताबों के अलावा अपनी पाठ्यसामग्री पढ़ा रहे हैं। इसका सीधा असर बच्चों के बस्ते पर पड़ रहा है। बच्चों को 15 की जगह 25 से 30 किताबें पढ़नी पड़ रही हैं।
आइसीएसई, सीबीएसई या यूपी बोर्ड अंग्रेजी माध्यम, सबमें कक्षा आठ तक का पाठ्यक्रम एक ही होता है। बोर्ड ने एलकेजी और यूकेजी में 14-14 किताबें निर्धारित की हैं। लेकिन, स्कूल प्रबंधन को यह किताबें कम लगती हैं। यही स्थिति कक्षा एक से 5 तक की है। बच्चों को निर्धारित 15 के अलावा 8 से 10 अतिरिक्त किताबें पढ़नी पड़ रही है। स्कूल प्रबंधन अतिरिक्त पढ़ाई के नाम पर अपनी पुस्तिकाएं बच्चों के कंधों पर थोप रहे हैं। तारामंडल निवासी अमित पांडेय बताते हैं, बस्ते की शिकायत पर कोई सुनवाई नहीं होती। प्रधानाचार्य कहते हैं, बच्चों की बेहतरी के लिए ही किताबें लगाई जा रही हैं। मजबूरी में ही किताबों को खरीदना पड़ता है। नंदानगर निवासी संजय सिंह बताते हैं, अधिकतर विद्यालय बहुमंजिली है। बस्ता लेकर सीढि़यां चढ़ना आसान नहीं होता। आजिज आकर ही महाराष्ट्र के बच्चों ने भूख हड़ताल का निर्णय लिया है। बच्चों के निर्णय ने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है।
---
पढ़ाते ही नहीं बेचते
भी हैं पाठ्य सामग्री
विद्यालय अपनी पाठ्य सामग्री ही पढ़ाते हैं। दिखाने के लिए बोर्ड के पाठ्यक्रम की चर्चा करते हैं। पाठयक्रम में अपनी किताबों का निर्धारण करते हैं। किताबें अपने प्रकाशकों के यहां छपवाते हैं। प्रकाशन का कमीशन उनके खाते में आता है। फिर, किताबों को बेचते भी हैं। कुछ विद्यालयों के कार्यालय में ही किताबें बिक जाती हैं तो अधिकतर दुकानों का चयन कर देते हैं। अभिभावक चयनित दुकानों से महंगे दाम पर निर्धारित किताबों को खरीदने के लिए मजबूर होते हैं। यह किताबें दूसरी जगह भी नहीं मिलती। शास्त्रीपुरम निवासी नितेंद्र पांडेय कहते हैं कि अच्छी पढ़ाई के नाम पर स्कूल वाले अभिभावकों को गुमराह कर रहे हैं। बच्चा कहीं पिछड़ न जाए, इस डर के चलते माता-पिता ठगे जा रहे हैं। कहीं कोई सुध लेने वाला नहीं है।