इंसानों को जगाने के लिए इमाम हुसैन ने की जंग
गोंडा : कर्बला के 72 शहीदों ने जो बेमिसाल काम किया, उसकी मिसाल दुनिया में नहीं मिलती है। यह बातें गत
गोंडा : कर्बला के 72 शहीदों ने जो बेमिसाल काम किया, उसकी मिसाल दुनिया में नहीं मिलती है। यह बातें गत बुधवार देर शाम डॉ. वसी हैदर के इमामबाड़े में हुई मजलिस में मौलाना शाकिर ने कहीं।
उन्होंने कहा कि हजरत इमाम-ए-हुसैन ने मुल्क या हुकूमत के लिए जंग नहीं की, बल्कि वह इंसानों के सोए हुए जेहन को जगाने आए थे। उनके कुनबे में शामिल बूढ़े, जवान, बच्चे और महिलाओं ने खुद पर जुल्म सहन कर लिया लेकिन 'नाना' के मजहब को जालिम 'यजीद' से बचा लिया। आशूरा के दिन कर्बला में जब इमाम हुसैन के सारे साथी और घरवाले शहीद हो गए तो उन्होंने आवाज दी कि कोई है जो मेरी मदद को आए' यह जुमला सुन शहीदों की लाशें जमीन-ए-कर्बला पर तड़पने लगी और कटे हुए सिरों से आवाजें आने लगीं। यहां नौहाख्वानी साहबे बयाज अधिवक्ता इरशाद ने की। सैयद रजा हुसैन रिजवी, सफदर हुसैन, काजिम, नब्बन, कल्बे आबिद, कल्बे वसी, जरगाम अब्राहम, शनाया, पारसा समेत अन्य रहे। वजीरगंज: मुहर्रम शुरू होते ही क्षेत्र में मजलिसों का दौर शुरू हो गया है। रात और दिन होने वाली मजलिसों में कर्बला की दास्तान सुनाई जाती है। बौगडा स्थित इमामबाड़ा में तकरीर करते हुए लखनऊ से आए वसीम रिजवी ने कहा कि हजरत इमाम-ए- हुसैन व उनके 72 साथियों की शहादत अश्कों के सैलाब से याद की जाती है। मुहर्रम कमेटी के सदर मोहसिन रजा रिजवी विल्सन ने बताया कि इमामबाड़ा में ताजिया रखे जाने की परंपरा काफी पुरानी है।