'जिगर' की स्मृतियों को सहेजने के लिए आया धन वापस
गोंडा : हमको मिटा सके, यह जमाने में दम नहीं, हमसे जमाना ़खुद है, जमाने से हम नहीं. यह
गोंडा : हमको मिटा सके, यह जमाने में दम नहीं, हमसे जमाना ़खुद है, जमाने से हम नहीं. यह शेर पढ़ने वाले जिगर मुरादाबादी की पुण्यतिथि शनिवार को है। इनकी स्मृतियों को सहेजने के लिए कई बार दावे किए गए लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं दिखा। यहां तक कि तत्कालीन सरकार ने 20 लाख रुपये का बजट स्वीकृत किया था, जिसे नगरपालिका ने वापस कर दिया। इसके बाद से खामोशी है।
जिगर मुरादाबादी का पूरा नाम अली सिकंदर था। इनका जन्म 6 अप्रैल 1890 को बनारस में हुआ था। बाद में इनका पूरा परिवार मुरादाबाद चला गया। इसके बाद वह गोंडा आ गए। इसके बाद वह गोंडा के ही होकर रह गए। दागे जिगर, शोला ए तूर, आतिशे गुल जैसी रचनाएं लिखने वाले मुरादाबादी की मृत्यु 9 ¨सतबर 1960 को यहां हुई। इससे पहले वह कई पुरस्कार हासिल कर चुके थे। उनकी स्मृतियों को सहेजने के लिए कई स्तर पर प्रयास किए गए। शहर के फैजाबाद रोड पर जिगर मेमोरियल इंटर कॉलेज संचालित होने के साथ ही जिगर अदबी सोसाइटी भी है। इसके माध्यम से विविध कार्यक्रम होते रहते हैं। मोहल्ले का नाम जिगरगंज है। रही बात उनकी मजार की, वहां पर अव्यवस्थाएं हावी है। अभी तक उसका विकास नहीं हो सका है। जानकारों की मानें तो तत्कालीन नगर विकास मंत्री आजम खां ने पूर्व की सपा सरकार में बीस लाख रुपये दिए थे। इससे मजार का सौंदर्यीकरण होना था। पालिका कर्मियों का कहना है कि विवाद के कारण काम नहीं हो पाया। सारा पैसा वापस कर दिया गया। शायर नज्मी कमाल ने जिगर से जुड़े स्थलों का विकास कराने की मांग की है। शनिवार को मुशायरे का आयोजन किया गया है।