जमींदार ने खुद की जमीन में बसाया था मथुराचौबे गांव
गोंडा : शहर से सटा मथुरा चौबे गांव एक जमींदार की निशानी है। बुजुर्गों की मानें तो पहले
गोंडा : शहर से सटा मथुरा चौबे गांव एक जमींदार की निशानी है। बुजुर्गों की मानें तो पहले यह गांव सबलपुर के नाम से जाना जाता था। यहां के जमींदार मथुरा चौबे ने अपनी खाली पड़ी जमीन पर गांव को बसाया था, इसके बाद गांव का नाम मथुरा चौबे पड़ गया। गांव में शहरी सुविधाएं नहीं है, लेकिन यहां के लोग अब शहरी परिवेश में शामिल होने लगे हैं।
इन पर है नाज
- गांव में कोई चर्चित हस्ती तो नहीं है, लेकिन यहां के लोग जमींदार मथुरा चौबे पर नाज करते हैं। गांव को बसाने के लिए सबसे पहले उनका नाम चर्चा में आता है।
आजीविका के साधन- यहां के अधिकांश बा¨शदे दूध कारोबार करते हैं। पशुपालन के लिए खेती के साथ ही दूध की आपूर्ति शहरों में की जाती है। इसके अलावा कुछ लोग नौकरी पेशा से जुड़े हैं। खुद के व्यवसाय के सहारे भी रोजी-रोटी कुछ लोगों की चल रही है।
आधारभूत ढांचा- गांव में सात मजरे हैं। जिसमें सबलपुर, सबलपुर टेपरा, शंकरपुरवा, खलगा, अहिरनपुरवा, कांदूपुरवा, बैरागीपुरवा शामिल हैं। आबादी 2358, जबकि मतदाता 2200 हैं। एक प्राइमरी स्कूल है। गांव से अस्पताल व थाने की दूरी पांच किलोमीटर है। हैंडपंप के जरिए लोग पानी पीते हैं, गांव में पांच तालाब भी हैं।
यह हो तो बने बात
- जलनिकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। शुद्ध पानी के लिए पाइप लाइन परियोजना की जरूरत है। सफाई व्यवस्था चौपट है। सड़क बदहाल है। रोजगार के लिए न तो बड़ा उद्योग है और न कोई अन्य व्यवस्था।