चुनावी चौपाल : मेेेेडिकल कॉलेज न होने से बढ़ रह मरीजों का दर्द
वादे हैं वादों का क्या मंडल मुख्यालय होने के बावजूद मेडिकल कॉलेज नहीं। इलाज के लिए लखनऊ का चक्कर काटते हैं मरीज।
गोंडा, जेएनएन। कहते हैं कि स्वास्थ्य से बड़ा कोई धन नहीं है लेकिन यहां पर तो सेहत का सिस्टम ही बीमार है। लंबे समय से मेडिकल कॉलेज की स्थापना की मांग चल रही है। हर बार वादे होते हैं, संकल्प लिए जाते हैं। घोषणाएं होती हैं लेकिन, होता कुछ नहीं है। जिससे मरीजों का दर्द कम होने के बजाय बढ़ता जा रहा है। यहां से लखनऊ की दूरी 120 किलोमीटर है, जहां पर यहां के लोगों को जाकर इलाज कराना पड़ता है। सिस्टम मरीजों की परेशानियों से बेपरवाह है। कहने को तो देवीपाटन मंडल मुख्यालय गोंडा है लेकिन मेडिकल कॉलेज गोंडा में नहीं बहराइच में बन रहा है। फिलहाल, मरीज जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। लखनऊ पहुंचते-पहुंचते कई जिंदगियां थम जाती है तो कुछ को इलाज ही नहीं मिल पाता है।
स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें तो जिला अस्पताल में पिछले चार साल से नाक, कान व गला रोग का कोई डॉक्टर नहीं है। महिला अस्पताल में अल्ट्रासाउंड मशीन तो है लेकिन जांच के लिए कोई चिकित्सक नहीं है। उधारी पर तीन दिन के लिए यहां पर मनकापुर से डॉक्टर आते हैं। यहां पर न तो न्यूरो की कोई सुविधा है, न ही कैंसर के इलाज की। आलम यह है कि ग्रामीण इलाकों के काफी अस्पताल फार्मासिस्ट के भरोसे चल रहे हैं। शहर के सरकारी डॉक्टरों पर प्राइवेट प्रैैक्टिस के आरोप लगते रहते हैं। निजी अस्पतालों में मरीजों को महंगा इलाज मिलता है लेकिन, सब कुछ वादों में सिमटा है। इसी अहम मुद्दे को लेकर रविवार को दैनिक जागरण ने शहर के मालवीय नगर स्थित दीनदयाल शोध संस्थान में बुद्धिजीवियों की एक चौपाल लगाई, जिसमें सभी के अपने-अपने दर्द दिखे।
कब मिलेगा मेडिकल कॉलेज पता नहीं
उप्र पेंशनर्स कल्याण संस्था के मंत्री केबी सिंह का कहना है कि यह दुर्भाग्य है। मंडल मुख्यालय न होना एक बड़ी बात है। गोंडा के लिए मेडिकल कॉलेज की घोषणा की गई लेकिन वह बहराइच चला गया। इसको लेकर नेता गंभीर नहीं है। स्वास्थ्य सेवाएं लचर है। सिस्टम फेल है। इलाज के लिए लोगों को लखनऊ जाना पड़ता है। व्यापारी नेता भूपेंद्र आर्य का कहना है कि मेडिकल कॉलेज न होने से हमें छोटी-छाेटी बीमारियों के लिए लखनऊ जाना पड़ता है। विकास की आस अभी हम लगाए बैठी हैं। ऐसे में काफी परेशानी होती है।
प्राइवेट प्रैक्टिस में फंस जाते हैं मरीज
व्यापारी नेता कप्तान सिंह कहते हैं कि सरकारी डॉक्टर मरीजों का इलाज कम खुद की प्रैक्टिस पर ज्यादा जोर देते हैं, जिससे आम आदमी की मुश्किलें कम नहीं होती है। जिला व महिला अस्पताल में सुविधाएं मरीजों को नहीं मिल पा रही है। शिक्षक जितेंद्र पांडेय का कहना है कि सरकारी डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं, जिससे मरीजों को काफी परेशानी होती है। मेडिकल कॉलेज न होने से कई बार यहां से रेफर होने के बाद मरीज रास्ते में दम तोड़ देते हैं।
जिंदगी बचाने के लिए मेडिकल कॉलेज की जरूरत
केमिस्ट एंड ड्रगस्टि कल्याण एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश सिंह का कहना है कि मंडल मुख्यालय होने के नाते यहां पर हर जगह से मरीज आते हैं। ऐसे में उन्हें इलाज के लिए लखनऊ जाना पड़ता है। रास्ते में बहुत मरीज दम तोड़ देते हैं। ऐसे में अगर यहां पर मेडिकल कॉलेज की स्थापना हो जाए तो स्थिति काफी हद तक सुधर सकती है। सिविल बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विवेक मणि श्रीवास्तव का कहना है कि मेडिकल कॉलेज के लिए बार एसोसिएशन की तरफ से प्रयास किया जाएगा। जन शिक्षण संस्थान के निदेशक प्रज्योति त्रिपाठी कहते हैं कि राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमी है। स्वयं के काम अच्छे से हो रहे हैं लेकिन समाज के कामों में उनकी रुचि नहीं है। समाज को इसके लिए जागरूक होना होगा।
नेता नहीं दे रहे ध्यान
मेडिकल कॉलेज संघर्ष समिति के अविनाश सिंह का कहना है कि अन्य जिलों में मेडिकल कॉलेज खुल गए लेकिन यहां के नेताओं ने इस पर ध्यान नहीं दिया। सेवानिवृत्त स्वास्थ्य कर्मी अनिल श्रीवास्तव का कहना है कि मेडिकल कॉलेज गोंडा में स्वीकृत हुआ और बहराइच कैसे चला गया, इस पर नेताओं को जवाब देना चाहिए। यूपीएमएसआरए के उपाध्यक्ष राधेश्याम गुप्ता का कहना है कि सरकारी डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे हैं। जिससे मरीजों को परेशानी हो रही है। मेडिकल कॉलेज न होने से सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। अरुण मिश्र का कहना है कि स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता है।