इन गांवों से कोई मुसाफिर भूखा न गुजरा
25 मई की बात है मैजापुर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन रुकते ही भूख व प्यास से परेशान यात्री रेलवे लाइन के किनारे स्थित तालाब से गंदा पानी पीने लगे। यह देख आसपास के गांवों के लोगों की आंखें भर आई। सभी ने मिलकर इनकी मदद करने का निर्णय लिया।
शिव प्रसाद तिवारी, हलधरमऊ (गोंडा)
कोरोना काल में लॉकडाउन से हर कोई जूझ रहा था। दिल्ली, मुंबई, पंजाब व अन्य शहरों में फंसे प्रवासी मुश्किलों से जूझने लगे। लोगों का काम छिन गया। खाने का संकट हो गया। घर से निकलने पर पाबंदी थी। ऐसे में सरकार ने दूर शहरों में रह रहे मजदूरों की घरवापसी की योजना तैयार की। गोरखपुर, बस्ती व अन्य शहरों को जाने वाले यात्रियों को लेकर जब ट्रेनें यहां पहुंचनी शुरू हुई तो गोंडा रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म फुल हो गया। ऐसे में ट्रेनों को कुछ दूरी वाले स्टेशनों पर रोकना पड़ा।
25 मई की बात है, मैजापुर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन रुकते ही भूख व प्यास से परेशान यात्री रेलवे लाइन के किनारे स्थित तालाब से गंदा पानी पीने लगे। यह देख आसपास के गांवों के लोगों की आंखें भर आई। सभी ने मिलकर इनकी मदद करने का निर्णय लिया।
इस तरह हुई मदद : मैजापुर, हलधरमऊ, उत्तरपुरवा, खालेपुरवा, हाता, साईंतकिया, कपूरपुर के ग्रामीणों ने स्टेशन के आउटर पर कैंप लगा दिया। कैंप में पानी के साथ ही भोजन तक तैयार करके बांटा गया। ट्रेन रुकते ही एक माह तक गांवों के लोगों ने यात्रियों को भोजन की व्यवस्था कराई। यहां के रहने वाले भाजपा नेता इमरान खां का कहना है कि हर किसी को इस तरह की गतिविधियों में आगे आकर प्रयास करना चाहिए। इसने समाज को एक नई सीख दी है। शंकरशरण शुक्ल, रामनाथ दूबे, सूफियान खां आदि ने कहा कि परहित से बढ़कर कुछ नहीं है। करीब एक माह तक ट्रेनों से लाए गए यात्रियों की ग्रामीणों ने मदद करके एक मिसाल कायम की है। ग्रामीणों को कई संगठनों ने सम्मानित किया।
कायम की मिसाल : ग्रामीणों के इस प्रयास को कैसरगंज के सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने मौके पर पहुंचकर सराहा। उन्होंने कहा कि जब देश से संकट से जूझ रहा था तो यहां के ग्रामीणों ने उम्मीदों का एक नया संसार तैयार किया। इनसे सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए।