सब निगल गई नदी की धारा, छोड़ गई सिर्फ आंसू
द्वारा लायी गई उपजाऊ मिट्टी से इनके खेत सोना उगलते थे। नकदी के तौर पर यहां के लोग दूध का व्यापार करते थे लेकिन इनकी संपन्नता को किसी की नजर लग गई। वर्ष 2005-06 में बने भिखारीपुर सकरौर व एल्गिन चरसड़ी तटबंध ने ऐसा कहर परपा
गोंडा: सरयू-घाघरा नदियों की गोद में 17 मजरों व करीब दो हजार की आबादी को समेटे परसपुर ब्लॉक का संपन्न गांव चंदापुर किटौली था। बरसात में दोनों नदियों के रौद्र रूप धारण करने पर भले ही इन गांवों के खेतों में लगी फसलों को बाढ़ का पानी निगल जाता था लेकिन, पानी घटने के बाद इन नदियों द्वारा लाई गई उपजाऊ मिट्टी से इनके खेत सोना उगलते थे। नकदी के तौर पर यहां के लोग दूध का व्यापार करते थे लेकिन, इनकी संपन्नता को किसी की नजर लग गई। वर्ष 2005-06 में बने भिखारीपुर सकरौर व एल्गिन चरसड़ी तटबंध ने ऐसा कहर बरपाया कि पूरा का पूरा गांव तबाह हो गया। ऐसे में यह सोचनीय विषय है कि बांध तो बचाव के लिए बनाया गया था, तो कहर कैसे बन गया? बता दें कि गांव के उत्तर दिशा सरयू व दक्षिण से घाघरा नदी आकर इस गांव को घेर कर आपस में मिलती थीं। दोनों बांध बन जाने से नदियों के पानी का फैलाव रुक गया और वर्ष 2007 जिस वर्ष बांध पूरी तरह बनकर तैयार हुआ। उसी वर्ष पानी के भारी दबाव में चंदापुर किटौली गांव के पास सात अगस्त को बांध टूट गया। साथ ही दूबेपुरवा, ननकाई पुरवा, बिचला मांझा, बलराम पुरवा समेत 14 मजरे व 50 वर्ष पुराना प्राथमिक विद्यालय घाघरा नदी में विलीन हो गए। जहां गांव था, वहां घाघरा ने अपनी मुख्य धारा बना लिया। खेतों में बीस फीट तक रेत जमा हो जाने से बाढ़ पीडितों को न रहने के लिए जमीन मिली और न खेती के लिए खेत। 285 परिवार अर्श से फर्श पर आ गए। आंसू पोंछते हुए 34 परिवारों को प्रशासन ने पसका के पूरे संगम गांव में जमीन मुहैया कराकर पनाह दिला दिया। तमाम परिवार इधर-उधर चले गए लेकिन, उम्मीद के सहारे करीब 30 परिवार एक दशक से भी अधिक समय से सकरौर बांध के स्पर नंबर एक पर फूस की झोपड़ी डालकर समय गुजार रहे हैं। ये वह लोग हैं जो हर चुनाव में सांसद-विधायक तो चुनते हैं लेकिन, बाद में कोई इनकी सुध लेने नहीं आता। कारण यह परिवार उनके लिए चुनावी मुद्दा नहीं हैं। पेश है अजय सिंह/कमल किशोर सिंह की यह रिपोर्ट -
बांध पर रह रही ननका पत्नी नकछेद की आंखों में बीते दिनों को याद करके आंसू आ गए। बोलीं कि बरसात में बाढ़ हमेशा आती थी लेकिन ज्यों-ज्यों पानी घटता था फसलें भी खूब होती थीं लेकिन, बांध ने बर्बाद कर दिया। ननकना पत्नी नीबर ने कहा कि बाढ़ से बचने के लिए जिन बांधों को बनाया गया था, वही बांध ही कहां मजबूत हैं। दोनों कई बार टूट चुके हैं। बांध पर ही रहने वाली गुड़िया पत्नी मेवालाल बोलीं कि बाढ़ के पानी में स्कूल नदी में समा गया और जो नया बना वह सरयू नदी के उस पार है, जहां पहुंचने के लिए बच्चों को नाव से नदी पार करनी पड़ती है। अनारा पत्नी अमरनाथ ने बताया कि घर के पुरुष घाघरा नदी में मछली का रात-रात भर शिकार करके दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करते हैं। बिट्टन पत्नी रामकिशुन ने कहा कि उन्हें न आवास मिला और न ही पट्टे की जमीन। बांध पर भी रहना दुश्वार है। बांध मरम्मत के वक्त इसे भी खाली करा लिया जाता है। कलावती पत्नी रामकेवल ने कहा कि खेत, घर सब घाघरा नदी में चला गया लेकिन, कोई भी नेता उनका हाल जानने यहां तक नहीं पहुंचा।