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मैने गांधी को देखा हैः मनकापुर राजभवन में कुछ इस तरह पड़े बापू के कदम

मनकापुर राजभवन महात्मा गांधी के पदचिह्नों का साक्षी है। वह 1929 में यहां आए। उस समय राजा राघवेंद्र प्रताप सिंह से उनकी भेंट में बहुत कुछ कहती है

By Nawal MishraEdited By: Published: Wed, 26 Sep 2018 06:02 PM (IST)Updated: Wed, 26 Sep 2018 11:52 PM (IST)
मैने गांधी को देखा हैः मनकापुर राजभवन में कुछ इस तरह पड़े बापू के कदम
मैने गांधी को देखा हैः मनकापुर राजभवन में कुछ इस तरह पड़े बापू के कदम

गोंडा (जेएनएन)। मनकापुर राजभवन महात्मा गांधी के पदचिह्नों का साक्षी है। वह 1929 में यहां आए। उस समय राजा राघवेंद्र प्रताप सिंह से उनकी भेंट में बहुत कुछ कहती है। प्रेरक संदेश देती है। राघवेंद्र प्रताप के पुत्र राजा आनंद सिंह ने अपने बाल्यकाल में गांधी को देखा, सुना और शायद बाद में समझा भी। उन्होंने खुद गांधीजी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया था। वह कहते हैं कि उनके पिताजी के कार्यों से बापू इतने अविभूत हुए कि वह उनकी कुशलता के लिए पत्र लिखते थे। उनके लिखे पत्र आज भी सुरक्षित है। इससे ठीक उलट राजा साहब गांधी जी से प्रभावित होकर उनके विचारों में इतना डूब गए लोग उन्हें गांधी राज कहने लगे था।

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गोंडा में कांग्रेस के बैनर तले बैठक 

बात उन दिनों की है जब देश को आजादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी भारतीयों में अलख जगाने का काम कर रहे थे। इसी क्रम में वह वर्ष 1929 में गोंडा जिले के खजुरी गांव में आंदोलनकारियों को संबोधित करने जा रहे थे। यह बैठक कांग्रेस के बैनर तले आयोजित थी। महात्मा गांधी के आगमन की जानकारी मनकापुर राज परिवार को मिली तो तत्कालीन राजा राघवेंद्र प्रताप सिंह ने भी बापू की आवाभगत करने का मन बनाया। महात्मा गांधी ट्रेन से मनकापुर आए तो राजा ने बग्घी (घोड़ों का रथ) भेजा। राजमहल में गांधी जी जोरदार स्वागत किया। इसी दिन राजा महात्मा गांधी की प्रेरणा से कांग्रेस में शमिल हो गए और सक्रिय आंदोलन में हिस्सा लिया।

अंग्रेजों से संघर्ष के लिए अंदर से बदलना पड़ेगा

राजा साहब अपने बच्चों को साथ लेकर महात्मा गांधी के पैर छूकर आशीर्वाद लेने गए तो गांधीजी ने मजाक ही मजाक में कह दिया कि राजा साहब अंग्रेजों से संघर्ष के लिए खुद को अंदर से बदलना पड़ेगा। बात कुछ ऐसी थी राजा साहब ने बच्चों को सफेद कुर्ता-पायजामा पहनाया था और राजशी पोशाक भी पहन रखी थी जो गांधीजी पैनी नजरों से बच नहीं पायी। इसके बाद गांधीजी छपिया के खजुरी गांव के लिए रवाना हो गए। गांव पहुंचकर अपना भाषण दिया, जहां पर प्रदेश के सबसे अधिक चौदह स्वतंत्रता सेनानी देश की सेवा में समार्पित हुए। वहीं मनकापुर राजमहल भी गौरवमयी इतिहास को समेटे है।

जब गांधी राजा कहने लगे लोग

जब गांधीजी मनकापुर आए तो राज परिवार के मुखिया राजा राघवेंद्र प्रताप सिंह उनसे मिलकर काफी प्रभावित हुए। यहां तक कि वह अपने दरबार में हमेशा गांधीजी चर्चा करते रहते और बात-बात में गांधीजी उपदेशों की दुआई देते थे। लोग राजा साहब के गांधी प्रेम को देखते हुए उन्हे गांधी राजा तक कहने लगे। वहीं आज भी खजुरी गांव गांधी की यादों को समेटे हुए है। गांव की गलियां व पंचायत का गांधी चबूतरा उनकी याद दिलाते हैं। गांव में गांधीजी के सानिध्य में रहने वाले लोग आज जिंदा नहीं हैं, लेकिन उनकी पीढिय़ां उन्हें नमन कर खुद को गौरवांवित महसूस करती हैं।

कुशलता के लिए बापू लिखते रहे पत्र

मनकापुर राजघराने के राजा आनंद सिंह कहते हैं कि उनके पिता जी राघवेंद्र प्रताप सिंह के कार्यों से बापू इतने अविभूत हुए कि वह उनकी कुशलता के लिए पत्र लिखते थे। उनके द्वारा लिखा गया पत्र आज भी सुरक्षित है। जिसमें कुशलक्षेम पूछने के साथ ही अंत में गांधीजी ने लिखा है बापू का आशीर्वाद।  


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