कम उम्र में ही स्वतंत्रता आंदोलन छेड़ा था बाबू ने
धनंजय तिवारी, गोंडा
गोंडा के स्वाधीनता सेनानी बाबू ईश्वरशरण 18 वर्ष की आयु में ही स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में कूद पडे़ थे। उन्होंने वर्ष 1936 में ही जनतंत्र का झंडा फहरा दिया था। इनका जन्म पांच अगस्त 1902 को गोंडा नगर के राधा कुंड मोहल्ले में हुआ था। इनके पिता बाबू श्यामाचरण बनारस के राजा मोतीचंद के मुख्तार थे। उस समय गोंडा में बनारस के राजा की जमींदारी थी। 1915 तक बाबू ईश्वर शरण गोंडा में शिक्षा ग्रहण कर वह अपने भाई के पास एटा चले गए और वहां राजकीय स्कूल में दाखिला लिया। वर्ष 1919 में जालियां वाला बाग के नरसंहार का इनके ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा। 1920 में महात्मा गांधी के आह्वान पर वह पढ़ाई छोड़ कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पडे़। 1921 में इन्होंने कांग्रेस वालेटिंयर कोर का गठन शुरू किया। 1923 में गोंडा में हुए दंगे के दौरान ईश्वरशरण ने अपने वालेंटियर कोर के साथ सराहनीय कार्य किया। 1925में कानपुर कांग्रेस में ईश्वरशरण 100 स्वयं सेवकों के साथ शामिल हुए। कमेटी ने इन्हें विष्णु शरण दुबलिश के ऊपर चलने वाले काकोरी षड़यंत्र केश में गवाही तोड़ने व मुकदमे की पैरवी के लिए भेजा। इसके अलावा 17 अगस्त 1927 की भोर में जब क्रांतिकारी राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को यहां जेल में फांसी पर लटकाने की तैयारी चल रही थी तो बाबू ईश्वरशरण अपने करीब 150 युवा साथियों के साथ फांसी कक्ष की बाहरी दीवाल के पास अरहर के खेत में ठिठुरती रात में दो बजे से ही बैठ गए। राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने उनसे कहा था कि जब उनके गले में फांसी का फंदा डाला जाएगा तो वे वंदेमातरम् का सिंहनाद करेंगे। अगर उसके उत्तर में बाहर से वंदेमातरम् की आवाज आई तो समझेंगे उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। फांसी पर लटकने से पहले जैसे लाहिड़ी ने वंदेमातरम् की आवाज लगाई तो उसके उत्तर में बाबू ईश्वर शरण व उसके साथियों ने अंग्रेजी सैनिकों से छिपते हुए वंदेमातरम् का नारा बुलंद किया। 1936 में कांग्रेस का अधिवेशन लखनऊ में हुआ जिसमें जिले का नेतृत्व ईश्वर शरण सहित तीन लोगों ने किया। 1936 में ही संयुक्त प्रांत आगरा अवध की प्रांतीय असेंबली का चुनाव हुआ जिसमें ईश्वर शरण कांग्रेस के उम्मीदवार मनोनीत किए गए और तरबगंज से विजई हुए। बाबू ईश्वरशरण ने स्वतंत्रता के विभिन्न आंदोलन मे बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। देश की आजादी के बाद 1948 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से अलग हुई और ईश्वरशरण विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देकर आचार्य नरेंद्र देव के नेतृत्व में सोशलिस्ट में शामिल हुए। आजादी के बाद वह गोंडा विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। इसके बाद सारा समय रचनात्मक कार्यो में लगाने की ठान ली और 26 अगस्त 1991 को यह स्वतंत्रता सेनानी पंचतत्व में विलीन हो गया।
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