-कहां गए वो दिन, कहां गए वे लोग
जागरण संवाददाता खानपुर (गाजीपुर) भारतीय संस्कृति में त्योहार एवं उत्सवों का विशेष महत्व र
जागरण संवाददाता, खानपुर (गाजीपुर) : भारतीय संस्कृति में त्योहार एवं उत्सवों का विशेष महत्व रहा है। हमारी संस्कृति की विशेषता रही है कि यहां पर मनाए जाने वाले सभी त्योहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित कर प्रकृति के सान्निध्य में लोगों में प्रेम, एकता, सद्भाव को बढ़ाते हैं, लेकिन बदले समय के अनुसार स्थिति में काफी परिवर्तन हुए हैं। होली पर्व के महीनों पहले से ही गांवों में रंग पकवान और पिचकारी बनाने की तैयारी शुरू हो जाती थी।
बहदिया के बुजुर्ग लालजी यादव बताते हैं कि पहले लोग बांसफोरों को अपने घर बुलाकर दर्जनों बांस की पिचकारी बनवाते थे और परिवार के बच्चों के साथ गांव के अन्य बच्चों में बांटते थे। टेसू, पलाश, सरसों व गेंदा के फूल मंगवाकर रंग तैयार करते थे। चुकंदर के रस और गुड़हल के फूल से लाल रंग, पालक, मेथी, गुलमोहर के पत्तों को सुखाकर हरा रंग बनाया जाता था। सरसों सिदूर और चंदन को पीसकर केसरिया एवं पीला रंग बनता था। ठंडई के लिए लौंग, इलायची, सौंफ, खरबूजे की बीज और काली मिर्च के साथ गुलाब की पंखुड़ियों आदि को मिलवाते थे। खानपुर के कैलाश सिंह कहते हैं कि होली सामूहिक रूप से मनाए जाने वाला पर्व है। आज बाजारीकरण ने रंग पिचकारी से लेकर खानपान और त्योहार के तौर तरीकों पर भी गहरा असर डाला हुआ है। ढोल-मंजीरे के साथ गाए जाने वाला गीत आज कानफोड़ू और अश्लीलता में बदल गए हैं। प्रेम से गले लगकर रंग लगाने की परंपरा आज कपड़ा फाड़ होली हो गई है। मिष्ठान पकवान में मांस, मिठाई और ठंडई में मदिरा का समावेश हो गया है।
होली बारात की आज रहेगी धूम
शादियाबाद : स्थानीय क्षेत्र में होली से एक दिन पूर्व यानी रविवार को परंपरागत होली बारात की धूम रहेगी। होली बारात में गंगा जमुनी-तहजीब और आपसी भाइचारे का संगम देखने को मिलता है। सबसे बड़ी बात यह होती है कि यह बारात मुस्लिम मोहल्ले से धूमधाम से गाजे बाजे के साथ निकलती है और पुरानी बाजार में दही हांडी फोड़ प्रतियोगिता के साथ समाप्त होती है। पुरानी बाजार में बारात का स्वागत रंग, अबीर व गुलाल से होता है। पहले से ही बारात के स्वागत के लिए घरों की छतों पर बाल्टी भर भरकर रंग रख लिए जाते हैं।