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गीत-संगीत के विद्यालय हैं कांता गुरु

ऐसा जुनून चढ़ा कि अपना पूरा जीवन संगीत को समर्पित कर दिए। नगर के तिवारी टोला मुहल्ले के संगीतज्ञ पंडित रमाकांत तिवारी जिन्हें लोग कांता गुरु के नाम से जानते है। उन्होंने संगीत की शिक्षा देकर हजारों युवाओं को इस कला से परिपूर्ण किया। भोजपुरी गायक कलाकार गोपाल राय बंटी वर्मा मदन राय स्व.रवींद्र राजू जैसे कलाकार उनमें से ही हैं। तबला वादक बबलू चौबे ने शुरूआती शिक्षा गुरुजी से पायी तो शास्त्रीय गायक कलाकार बलवंत सिंह का जमकर अभ्यास गुरुजी ने कराया। कांता गुरु के शिष्य सजीत ओझा गंधर्व महाविद्यालय दिल्ली में संगीत के शिक्षक हैं। इनके अलावा त्रिभुवन तिवारी रामप्रसाद चंदन गुड्डू तिवारी धनंजय राय उर्फ धनजी तबला के क्षेत्र में तो गोलू यादवभोला पांडेय अभिनिवेश गायन में पहचान बनाए हुए है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 29 Jun 2020 06:37 PM (IST)Updated: Mon, 29 Jun 2020 06:37 PM (IST)
गीत-संगीत के विद्यालय हैं कांता गुरु
गीत-संगीत के विद्यालय हैं कांता गुरु

गोपाल सिंह यादव

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जागरण संवाददाता, मुहम्मदाबाद (गाजीपुर) : संगीत का ऐसा जुनून चढ़ा कि अपना पूरा जीवन उसी को  समर्पित कर दिए। नगर के तिवारी टोला मोहल्ले के संगीतज्ञ पंडित रमाकांत तिवारी जिन्हें लोग कांता गुरु के नाम से जानते हैं। उनकी संगीत की समझ व ज्ञान गजब का है। उन्हें संगीत का विद्यालय भी कह सकते हैं। उन्होंने संगीत की शिक्षा देकर अब तक हजारों युवाओं को इस कला से परिपूर्ण किया है। भोजपुरी गायक कलाकार गोपाल राय, बंटी वर्मा, मदन राय, स्व. रवींद्र राजू जैसे कलाकार उनमें से ही हैं।

प्रसिद्ध तबला वादक बबलू चौबे ने शुरूआती शिक्षा गुरुजी से पायी। शास्त्रीय गायक कलाकार बलवंत सिंह का जमकर अभ्यास गुरुजी ने ही कराया। कांता गुरु के शिष्य सजीत ओझा गंधर्व महाविद्यालय दिल्ली में संगीत के शिक्षक हैं। इनके अलावा त्रिभुवन तिवारी, रामप्रसाद, चंदन, गुड्डू तिवारी, धनंजय राय उर्फ धनजी तबला के क्षेत्र में तो गोलू यादव, भोला पांडेय, अभिनिवेश गायन में पहचान बनाए हुए हैं। इस संबंध में संगीतज्ञ कांता गुरु ने बताया कि संगीत की शुरूआती शिक्षा उन्हें अपने पिता स्व. पंडित बेचू तिवारी से मिली। उसके बाद कुछ दिनों तक उन्हें बीएचयू के संगीत विभागाध्यक्ष पंडित शिवप्रसाद तिवारी के सानिध्य में इस कला को सीखने का मौका मिला। उन्होंने वर्ष 1962 से संगीत भजन की शुरूआत किया। वह संस्कृत की पढ़ाई करने बिहार के बीसी बसाव मठ बक्सर गये, लेकिन संगीत में मन लगने से वहां से वापस लौट आए। संगीत के जुनून के चलते कई नौकरियां भी छोड़ दी। उन्होंने वर्ष 1980 से 1988 तक रेडियो प्रोग्राम भी किए। बताया कि बच्चों को संगीत सिखाने के लिए अग्रवाल टोली में सुगम संगीतालय का संचालन कर रहे हैं, जहां पर शुल्क की बाध्यता नहीं है। बावजूद संगीत सीखने वाले स्वयं सहयोग के लिए आतुर रहते हैं। उनके जीवन का उद्देश्य नये कलाकारों की फौज तैयार कर गीत-संगीत को जन-जन तक पहुंचाना है।


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