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स्कंदगुप्त का विजय स्तंभ , गुप्तकालीन स्वर्ण युग का गवाह

भारत के गुमनाम इतिहास को अपने सीने में समेटे सैदपुर के भितरी गांव में स्थित स्कंद गुप्त का स्तंभ व खुदाई में मिले अवशेष की तरफ ध्यान न दिए जाने के कारण भारतवासी अपने गौरवशाली इतिहास से अंजान हैं। गुप्तवंश की आठवीं पीढ़ी के शासक स्कंदगुप्त व हुणों के बीच हुए युद्ध

By JagranEdited By: Published: Thu, 17 Oct 2019 09:53 PM (IST)Updated: Thu, 17 Oct 2019 09:53 PM (IST)
स्कंदगुप्त का विजय स्तंभ , गुप्तकालीन स्वर्ण युग का गवाह
स्कंदगुप्त का विजय स्तंभ , गुप्तकालीन स्वर्ण युग का गवाह

जासं, सैदपुर (गाजीपुर) : भारत के गुमनाम इतिहास को अपने सीने में समेटे सैदपुर के भितरी गांव में स्थित स्कंद गुप्त का स्तंभ व खोदाई में मिले अवशेष की तरफ ध्यान न दिए जाने के कारण भारतवासी अपने गौरवशाली इतिहास से अंजान हैं। गुप्तवंश की आठवीं पीढ़ी के शासक स्कंदगुप्त व हुणों के बीच हुए युद्ध के बाद लगा विजय स्तंभ आज भी उपेक्षा का शिकार है। उस समय के भाषा में लिखे शिलापट्ट भी यहां मिले थे। कई प्राचीन कालीन मूर्तियां भी मिली जिन्हें आज भी संग्रहालय में रखा गया है। एक क्षतिग्रस्त मूर्ति व अवशेष आज भी यहां विद्यमान हैं।

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स्तंभ के इतिहास पर गौर करें तो प्रारंभिक दिनों में गुप्त शासक स्कंदगुप्त को विदेशी अतिक्रमणकारियों खासकर हुणों का सामना करना पड़ता था। हुणों को परास्त कर स्कंदगुप्त ने गाजीपुर के सैदपुर भितरी में विजय स्तंभ का निर्माण करवाया था जो हुणों पर विजय का गवाह है। गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी सदी के अंत में प्रयाग के निकट कौशांबी में हुआ था इसलिए मुख्य कार्यक्षेत्र उत्तर प्रदेश व बिहार था। यहीं पर अधिकांश अभिलेख मिलते हैं। हुणों ने जब आक्रमण किया तो स्कंद गुप्त ने बहादुरी से उनका सामना किया और मध्य एशिया से आए हुणों को हराकर इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया। उसी समय सम्राट स्कंद गुप्त ने भितरी में विजय स्तंभ का निर्माण करवाया था। स्तंभ की बनावट से प्रतीत होता है कि यह किले के अंदर रहा होगा लेकिन किला ढह जाने से वर्तमान में खुले आकाश के नीचे आ गया है। 1860 से अब तक सात बार इस स्थान की खोदाई हुई है। प्राचीन कालीन मूर्तियां मिलीं थीं जो देश के विभिन्न संग्रहालयों में रखी गईं हैं। अब यहां की स्थिति बेहाल है। स्तंभ के पास मिले अवशेष स्थल पर बकरियां चराई जाती हैं, लोग गंदगी करते हैं। यहां दो चौकीदार तो पुरातत्व विभाग की तरफ से तैनात किए गए हैं लेकिन वह मौके पर मिलते नहीं हैं।

उपेक्षा के दंश से सिसकियां ले रहा स्थल

तत्कालीन जिलाधिकारी राजन शुक्ल ने वर्ष 1998-99 में स्तंभ के सामने पार्क का निर्माण करवाया था। पार्क में गोलंबर के अलावा झूला आदि लगाया गया है लेकिन रखरखाव के अभाव में वह भी बेकार पड़ा है। सामाजिक कार्यकर्ता व भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के जिला उपाध्यक्ष सनाउल्लाह खां उर्फ शन्ने ने देश के पीएम व प्रदेश के सीएम समेत आला अधिकारियों को कई बार पत्रक लिखा। जनसूचना अधिकार के तहत सूचनाएं भी मांगीं। कई बार ग्रामीणों के साथ मिलकर सफाई किया लेकिन नतीजा सिफर रहा। स्तंभ के पास आडोटोरियम के साथ-साथ यहां पेयजल, रोशनी समेत अन्य सुविधाओं कराने की आवश्यकता है।


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