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श्रीरामचरित मानस व गीता भारतीय संस्कृति की आत्मा

जासं सादात (गाजीपुर) श्रीरामचरित मानस व श्रीमछ्वागवत गीता भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग ही नहीं अपितु आत्मा भी हैं। इसे हम सभी को आत्मसात करना चाहिए। उक्त बातें मानस मर्मज्ञ डा. उमाशंकर त्रिपाठी व्यासजी ने नगर में चल रहे सात दिवसीय संगीतमय श्रीमछ्वागवत कथा के तीसरे दिन बुधवार की रात कही।

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 Nov 2019 07:23 PM (IST)Updated: Fri, 29 Nov 2019 06:06 AM (IST)
श्रीरामचरित मानस व गीता भारतीय संस्कृति की आत्मा
श्रीरामचरित मानस व गीता भारतीय संस्कृति की आत्मा

जासं, सादात (गाजीपुर) : श्रीरामचरित मानस व श्रीमद्भागवत गीता भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग ही नहीं अपितु आत्मा भी हैं। इसे हम सभी को आत्मसात करना चाहिए। उक्त बातें मानस मर्मज्ञ डा. उमाशंकर त्रिपाठी व्यासजी ने नगर में चल रहे सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन बुधवार की रात कही। रामायण से हमें जहां मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन से सीख मिलती है। वहीं मनोहर श्रीकृष्ण की गीता के उपदेशों से हमें उस पर अमल कर अपनी संस्कृति की रक्षा करने का भाव मन में पैदा करने की जिज्ञासा भी बढ़ती है। हम सभी को इन महान पवित्र ग्रंथों का श्रवण व मनन प्रतिदिन करना चाहिए। इस मौके पर कहा कि हमें अहंकार नहीं करना चाहिए। अहंकार से परिवार, विद्या, धन, यश, कीर्ति नष्ट हो जाता हैं जो बाद में दुखों का कारण बनता हैं। राजेंद्र जायसवाल, अमित जायसवाल, सुरेंद्र, महेंद्र, बाबू, डिम्पल, वैभव मौजूद थे।

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