रामचरितमानस विश्व का श्रेष्ठ पौराणिक महाकाव्य
जासं, गाजीपुर : तुलसी का रामचरितमानस भारतीय संस्कृति का विश्वकोष है और साथ ही वह विश्व क
जासं, गाजीपुर : तुलसी का रामचरितमानस भारतीय संस्कृति का विश्वकोष है और साथ ही वह विश्व का एक श्रेष्ठ पौराणिक महाकाव्य है। रामकथा के माध्यम से तुलसी ने भारतीय जीवन की नाना दशाओं, गतिविधियों, संघर्षों व आदर्शों का जो चित्रण किया है वह साढ़े चार सौ वर्षों बाद भी भारतीय जीवन का आदर्श बना हुआ है। यह कहना था वरिष्ठ साहित्यकार जितेंद्र नाथ पाठक का। वह शुक्रवार को पंडित रामचरित उपाध्याय स्मृति संस्थान में आयोजित तुलसी जयंती को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने आगे कहा कि महात्मा गांधी ने स्वराज्य का आदर्श रामराज्य को ही माना था। जहां तक कवित्व का प्रश्न है, तुलसी द्वारा पूरे रामचरित से अनेक मार्मिक घटनाओं का चयन और उसका हृदयस्पर्शी वर्णन उनके महाकवित्व का प्रमाण है। अपने 12 ग्रंथों में तुलसी ने कवितावली के उत्तराखंड में सामाजिक यथार्थ का ज्वलंत चित्रण किया है। अध्यक्ष रामवृक्ष पांडेय ने तुलसी को श्रृंगारिक पीड़ा का मार्मिक कवि बताया। तुलसी भक्ति के बहुत बड़े कवि थे ¨कतु वह एकांतिक भक्ति न होकर लोकधर्मी थी। डा. मंधाता राय ने कहा कि मानस के चरित्रों में ज्ञान, कर्म और उपासना का पूर्ण प्रकर्ष प्राप्त होता है। तुलसी के राम एक मिथक थे जिसमें उन्होंने शक्ति, शील और सौंदर्य संपन्न ईश्वरत्व की प्रतिष्ठा की थी। माधव कृष्ण ने कहा कि तुलसी ने मानस में राम और हनुमान को सर्वाधिक महत्व दिया। वे महत चेतना के उपासक थे, इसलिए उन्हें आध्यात्मिक ²ष्टि से देखना उचित होगा। तुलसी की लोकप्रियता के पीछे उनका साम्यवाद है। डा. गजाधर शर्मा गंगेश ने कहा कि मानस में राम ने कई बार कूटनीतिक ढंग से कार्य किए। जैसे.बालि वध, अयोध्या लौटते हुए राम का हनुमान को अयोध्या की राजनीतिक दशा देखने के लिए पहले भेजना आदि। डा. बालेश्वर विक्रम ने कहा कि तुलसी को समझने के लिए राजनीतिक की अपेक्षा आध्यात्मिक ²ष्टिकोण की आवश्यकता है। इस दौरान डा. रमाशंकर ¨सह, त्रिभुवन ¨सह, विद्याशंकर पांडेय व त्रिभुवननाथ वेणु ने भी अपना विचार प्रस्तुत किया। गोष्ठी में अनंतदेव पांडेय, कामेश्वर दुबे, दिनेशचंद्र शर्मा, दुर्गा तिवारी, गोपाल गौरव आदि ने भी भाग लिया। श्रोताओं में प्रमोद कुमार राय, सियारामशरण वर्मा, डा. उदय प्रताप पांडेय व डा. सत्येंद्र यादव आदि उपस्थित थे।