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जगतगुरु स्वरूपानंद सरस्वती की तबीयत बिगड़ी, लौटे वाराणसी

क्षेत्र के बभनौली में बिछुड़ननाथ महादेव धाम स्थित मुक्ति कुटी पर चल रहे आठ दिवसीय महोत्सव में मंगलवार को रासलीला देखते समय रात 11 बजे जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की तबीयत बिगड़ गई। इसके चलते वह वाराणसी चल गए। इनका होली के अवसर पर अपने बाल सखाओं के साथ होली खेलने के कार्यक्रम स्थगित हो गया। इधर वृंदावन से आए रासलीला कलाकारों ने अंतिम दिन बरसाने की लट्ठमार होली खेलकर महोत्सव का समापन किया। भंडारा से हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 06:34 PM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 06:34 PM (IST)
जगतगुरु स्वरूपानंद सरस्वती की तबीयत बिगड़ी, लौटे वाराणसी
जगतगुरु स्वरूपानंद सरस्वती की तबीयत बिगड़ी, लौटे वाराणसी

जासं, खानपुर (गाजीपुर) : क्षेत्र के बभनौली में बिछुड़ननाथ महादेव धाम स्थित मुक्ति कुटी पर चल रहे आठ दिवसीय महोत्सव में मंगलवार को रासलीला देखते समय रात 11 बजे जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की तबीयत बिगड़ गई। इसके चलते वह वाराणसी चल गए। इससे होली के अवसर पर उनका अपने बाल सखाओं के साथ होली खेलने के कार्यक्रम स्थगित हो गया। इधर, वृंदावन से आए रासलीला कलाकारों ने अंतिम दिन बरसाने की लट्ठमार होली खेलकर महोत्सव का समापन किया। भंडारा से हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया।

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इसके पूर्व मुक्ति महोत्सव में स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि मेरी तपस्थली और कर्म भूमि क्षेत्र में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार होना दुखद है। आम जनता को इसका विरोध करना चाहिए। आपका सनातन धर्म ही दुनिया में एक मात्र ईश्वर प्रदत्त धर्म है। शेष धर्म मनुष्यों द्वारा अपने स्वार्थ के लिए बनाया गया है। ब्रिटिश लाइब्रेरी में रखा दुनिया का सबसे पुराना ग्रंथ ऋग्वेद है जो हजारों साल से अधिक पुराना है। शीतल चंदन को भी जब अधिक घिसा जाता है तो क्रोधित होकर लाल हो जाता है। आप लोग मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण पर क्रोधित क्यों नहीं होते हैं। ये स्वार्थी और नीच प्रवृति के लोग हैं। इनसे आपका भला नहीं होगा बल्कि पथभ्रष्ट होना तय है। यहां के खबरों पर नजर पड़ते ही हम लोग चितित हो गए। आगे कहा कि गुरू का सदैव सम्मान करें जो अपने गुरू की बात नहीं मानता है उसका पतन तय है। रावण ताकतवर होते हुए भी अपने गुरू शंकर की बात न मानकर सर्वस्व नष्ट कर बैठा। गुरू को कभी भी दान नहीं देना चाहिए। जिससे आप याचक बन मांगने का कार्य करते हैं उसे देने का अधिकार नहीं है। सबसे बड़ा दान हैं अन्न दान। किसी भूखे को भोजन करा देना 10 यज्ञ में आहुति देने के बराबर है। गरीब के उदराग्नि में अन्न की आहुति मानसिक, आत्मिक और भौतिक सभी सुखों का आनंद देता है। हिगलाज सेना की ओर से आयोजित इस महोत्सव में सैकड़ो गरीबों का निशुल्क इलाज किया गया। लोगों को सत्संग और रासलीला के माध्यम से धर्म के प्रचार प्रसार के लिए सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष लक्ष्मीमणि शास्त्री और नीलमणि शास्त्री को इसे प्रति वर्ष कराने का आदेश दिया।


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