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बड़े बेआबरू होकर उनके कूचे से निकले 'तुम'

जनता की हित नहीं सीट के लिए छोड़ा साथ -बड़ी अजीब बात है कि जनता की हित न पूरा होने को लेकर गठबंधन से तलाक की बात करने वाली सुभासपा ने इस वजह से भाजपा का साथ छोड़ा कि उसे उसके मुताबिक सीट नहीं मिल रही थी। पार्टी भी मानती है कि इसका नुकसान उसे होगा लेकिन इस बात में खुशी जता रही है कि अपने से ज्यादा भाजपा का नुकसान करेंगे। जहां तक बात महागठबंधन में शामिल होने की है तो शायद वहां के लिए अब बड़ी देर हो चुकी है। जहूराबाद विधानसभा जहां से ओमप्रकाश राजभर विधायक हैं वह राजभरों की बहुलता वाली सीट मानी जाती है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 15 Apr 2019 06:19 PM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2019 06:19 PM (IST)
बड़े बेआबरू होकर उनके कूचे से निकले 'तुम'
बड़े बेआबरू होकर उनके कूचे से निकले 'तुम'

सर्वेश कुमार मिश्र

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---------------- गाजीपुर : विचारों के बेमेल गठबंधन से आशातीत सफलता पाने वाली भाजपा और सुभासपा की दो साल बाद राहें जुदा हो गईं तो हैरत किसी को नहीं हुई। हालांकि नुकसान किसको कितना होगा यह तो वक्त बताएगा लेकिन कसक दोनों पार्टियों को होगी। शायद भाजपा ने तटस्थ होने की मन:स्थिति पहले से बना रखी थी। वजह भी साफ थी कि जिस सबसे बड़े दल की वजह से न सिर्फ ओमप्रकाश राजभर जीते बल्कि उनकी पार्टी के चार विधायक विधानसभा पहुंचे उसे कोसने का कोई मौका उन्होंने छोड़ा नहीं। कभी गठबंधन को तोड़ने की दहाड़ भरने वाली सुहेलदेव समाज पार्टी ने उस समय भाजपा का साथ छोड़ा जब इसके सिवा उसके पास कोई चारा न बचा।

सूबे में सरकार बनने के साथ ही सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर भाजपा के लिए परेशानी बन बैठे। उन्होंने भाजपा की जितनी किरकिरी कराई शायद पूरा विपक्ष मिलकर नहीं कर पाया। मनचाहा मंत्रालय न मिलने से लेकर शुरू हुई उनकी आक्रामकता भाजपा को असहज करती रही लेकिन मजाल क्या कि कोई भाजपाई उनके खिलाफ मुंह खोल दे। आलम यह हो गया था कि भाजपा को सुभासपा न लीलते बन रही थी न ही उगलते। बदले परिवेश में भाजपा ने भी राजभर समाज को साधने के लिए उनके मुकाबले सूबे के दूसरे मंत्री अनिल राजभर को लगाया। बढ़ते खटास के बीच कई बार लगा कि दोनों दलों की 'सगाई' अब टूटी कि तब। लेकिन अपने हित को देखते हुए दोनों इससे बचते रहे। डगमगाते-डगमगाते लोकसभा चुनाव तक मामला आ गया तो लगा कि दोनों अब एक ही रहेंगे। सुभासपा ने पांच सीट पर दावेदारी की तो भाजपा ने इसे पूरी तरह न सिर्फ अनसुना कर दिया बल्कि यह साफ जता दिया कि उनकी इतनी हैसियत नहीं है। मौके की नजाकत भांपते हुए ओमप्रकाश राजभर पांच से तीन, तीन से दो, दो से एक सीट पर भी राजी हो गए। सूत्रों के मुताबिक यहां भाजपा अपनी शर्त रखी कि उस एक सीट पर आप खुद लड़ेंगे। दूसरे को लड़ाने की स्थिति में सिबल मेरा यानी छड़ी नहीं कमल होगा। इस स्थिति में अब तक ललकारने वाले ओमप्रकाश के सामने अब कोई चारा नहीं बचा था। ---

जनता की हित नहीं सीट के लिए छोड़ा साथ

-बड़ी अजीब बात है कि जनता की हित न पूरा होने को लेकर गठबंधन से तलाक की बात करने वाली सुभासपा ने इस वजह से भाजपा का साथ छोड़ा कि उसे उसके मुताबिक सीट नहीं मिल रही थी। पार्टी भी मानती है कि इसका नुकसान उसे होगा लेकिन इस बात में खुशी जता रही है कि अपने से ज्यादा भाजपा का नुकसान करेंगे। जहां तक बात महागठबंधन में शामिल होने की है तो शायद वहां के लिए अब बड़ी देर हो चुकी है। जहूराबाद विधानसभा जहां से ओमप्रकाश राजभर विधायक हैं वह राजभरों की बहुलता वाली सीट मानी जाती है। ---

पांच सीट हम लोग मांग रहे थे और भाजपा एक देने को तैयार थी। हम उस पर भी राजी हुए तो उसने अपने सिबल पर ही लड़ने की शर्त रख दी। हम मानते हैं कि हमारी पार्टी कोई सीट जीतने की स्थिति में नहीं है लेकिन भाजपा को हराने का दम तो है ही हमारे पास। हम दिखा देंगे कि धोखे का परिणाम क्या होता है। 2022 में उन्हें हमारे पास आना होगा।

-रामजी राजभर, मंत्री प्रतिनिधि व सुभासपा के जिलाध्यक्ष।


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