शायर के साथ सच्चे देशभक्त थे 'फिराक'
गाजीपुर : उर्दू शायरी के बेताज बादशाह एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित रघुपति सहाय 'फिराक गोरखपुरी' का नाम परिचय का मोहताज नहीं है। शेर कहने का अनोखा अंदाज ही इनकी शायरी को जिंदा किए हुए है। यही वजह है कि क्षेत्र में होने वाले मुशायरा एवं कवि सम्मेलन में इनका जिक्र जरूर होता है। इनकी जयंती के मौके पर गुरुवार को नगर के चंदननगर में अरुण श्रीवास्तव के आवास पर गोष्ठी का आयोजन किया गया।
इस मौके पर इनके शेर, नज्म, रचनाओं के साथ देशभक्ति पर चर्चा हुई। सपा जिलाध्यक्ष राजेश कुशवाहा ने कहा कि फिराक शायर होने के साथ ही देशभक्त भी थे। आजादी के दौरान उन्होंने काफी प्रभावित किया। इनका चयन आइसीएस एवं पीसीएस की परीक्षा में हुआ लेकिन गांधी के आंदोलन से प्रभावित होकर डिप्टी कलेक्टर के पद से त्यागपत्र देकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।
जवाहरलाल नेहरू के साथ जेल गए। श्री कुशवाहा ने उर्दू शायरी के क्षेत्र में योगदान करने वालों को पुरस्कार देकर सम्मानित करने की मांग की। अंत में रामजन्म श्रीवास्तव के निधन पर दो मिनट का मौन रखकर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। गोष्ठी में मुक्तेश्वर श्रीवास्तव, गुलाबबचन श्रीवास्तव, परमानंद श्रीवास्तव, सदानंद यादव, गुलाम कादिर राईनी, अखिलेश सिंह, परशुराम, हरिश्वचंद्र गौंड़ आदि थे। संचालन देवेंद्र श्रीवास्तव ने किया।