जेब पर भारी निजी प्रकाशन की किताबों के खर्चे का बोझ
निजी प्रकाशन की महंगी किताबों के खर्चे का बोझ अभिभावकों पर भारी पड़ रहा है। अभिभावकों का कहना है कि मोटे मुनाफे के चक्कर में ज्यादातर निजी विद्यालयों में एनसीईआरटी की किताबों को नहीं चलाया जाता। लॉकडाउन में भी कई विद्यालयों में तो परिसर में ही किताबें बेची जा रही है। तो कई विशिष्ट दुकान से ही किताबें खरीदने के लिए कहते हैं। स्कूलों में एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम चलाने के लिए किए गए सरकारी आदेश और नोटिस का भी कोई असर नहीं होता। गाजियाबाद पेरेंट्स एसोसिएशन से विवेक त्यागी ने बताया कि लगातार जन प्रतिनिधियों और अधिकारियों से शिकायत करते आ रहे हैं लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं हुआ। अभिभावक भूपेंद्र शर्मा नितिन शर्मा शारदा प्रसाद और मनीष शर्मा और अन्य ने इस संबंध में जानकारी दी। --- विद्यालय परिसर में नहीं बेची जा सकती किताबें उत्तर प्रदेश स्ववित्त पोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनियमन) अधिनियम - 201
जागरण संवाददाता, गाजियाबाद : निजी प्रकाशन की महंगी किताबों के खर्चे का बोझ अभिभावकों पर भारी पड़ रहा है। अभिभावकों का कहना है कि मोटे मुनाफे के चक्कर में ज्यादातर निजी विद्यालयों में एनसीईआरटी की किताबों को नहीं चलाया जाता। लॉकडाउन में भी कई विद्यालयों में तो परिसर में ही किताबें बेची जा रही है। तो कई विशिष्ट दुकान से ही किताबें खरीदने के लिए कहते हैं। स्कूलों में एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम चलाने के लिए किए गए सरकारी आदेश और नोटिस का भी कोई असर नहीं होता। गाजियाबाद पेरेंट्स एसोसिएशन से विवेक त्यागी ने बताया कि लगातार जन प्रतिनिधियों और अधिकारियों से शिकायत करते आ रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं हुआ। अभिभावक भूपेंद्र शर्मा, नितिन शर्मा, शारदा प्रसाद और मनीष शर्मा और अन्य ने इस संबंध में जानकारी दी।
विद्यालय परिसर में नहीं बेची जा सकती किताबें
उत्तर प्रदेश स्ववित्त पोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनियमन) अधिनियम - 2018 के अनुसार किसी भी विद्यालय परिसर में किताबें नहीं बेची जा सकती है। न ही विद्यालय किसी भी दुकान से किताब खरीदने के लिए अभिभावकों को बाध्य कर सकते हैं। अभिभावक भूपेंद्र सिंह ने बताया कि शिकायत करने पर नोटिस और आदेश जारी किए जाते हैं, लेकिन विद्यालयों पर इन आदेशों का नोटिस का फर्क नहीं दिखाई देता और धड़ल्ले से विद्यालय परिसर में किताबें विद्यालय द्वारा जारी शेड्यूल के हिसाब से बेची गई हैं। अन्य स्टेशनरी भी स्कूल से ही खरीदने का दबाव होता है।
लॉकडाउन में किताबें खरीदने के लिए मैसेज
लॉकडाउन में भी विद्यालयों की ओर से अभिभावकों को किताबें खरीदने के लिए मैसेज भेजे जा रहे हैं। अभिभावक नितिन शर्मा बताया कि शेड्यूल बनाकर अभिभावकों के मोबाइल पर भेजा गया है कि किस तिथि में किस कक्षा की किताबें विद्यालय परिसर में दी जाएंगी। निजी विद्यालय में 16 मई से 21 मई तक सभी अभिभावकों को किताबें खरीदने के लिए शेड्यूल मोबाइल पर भेजा गया और शेड्यूल के हिसाब से किताबें बेची गई। आदेश का उल्लंघन कर किताबें बेचने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। अन्य विद्यालयों की ओर से भी अभिभावकों पर किताबें खरीदने के लिए मैसेज भेजे जा रहे हैं।
80 फीसद तक महंगी है किताबें
अभिभावक नितिन शर्मा ने बताया कि निजी प्रकाशन की किताबें एनसीईआरटी से 60 से 80 फीसद तक महंगी हैं। जो किताब एनसीईआरटी की 40-60 रुपये में मिलती है वहीं निजी प्रकाशन की किताब 300-495 तक में मिलती है। वहीं अभिभावक शारदा प्रसाद का कहना है कि एनसीईआरटी की किताबें सस्ती होने के बाद भी प्रिट रेट से दस फीसद तक कम में मिल जाती हैं। अभिभावक मनीष शर्मा ने कहा कि कि कई विद्यालयों में तो एनसीईआरटी और निजी प्रकाशन की किताबों के रेट का अंतर दस गुना तक पहुंच जाता है। किताबें प्रिट रेट पर मिलती हैं।
दुकानों पर फिक्स होता है कमीशन
जिन विद्यालयों में किताबें नहीं बेची जाती उनमें किसी निर्धारित दुकान से ही किताबें खरीदने के लिए अभिभावकों से कहा जाता है। एक किताब की दुकान पर नाम न छापने की शर्त पर बताया कि किताब के हिसाब से या बच्चे पर निर्धारित रेट से कमीशन फिक्स होता है। विद्यालयों की ओर से कमीशन न लिया जाए तो यही किताबें अभिभावकों को 60 फीसद तक कम रेट में दी जा सकती है। जिन विद्यालय परिसर में किताबें बेची जाती है इनमें तो पब्लिशर्स से भी मोटा कमीशन लिया जाता है और कई बार प्रिट रेट भी खुद ही निर्धारित किया जाता है। जिन विद्यालयों की अभिभावकों से शिकायत मिली थी उन्हें नोटिस जारी किया गया। किसी भी विद्यालय परिसर में किताबें नहीं बेची जाएंगी और एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम विद्यालयों में लागू किया जाएगा। इस संबंध में सभी विद्यालयों को आदेश जारी किए जा चुके हैं। किसी भी विद्यालय की शिकायत मिलती है तो उस पर कार्रवाई की जाएगी।
- रवि दत्त शर्मा, जिला विद्यालय निरीक्षक