इंदिरापुरम हैबिटेट सेंटर बनाने वाली कंपनी का फाइनेंशियल ऑडिट कराने की सिफारिश
इंदिरापुरम हैबिटेट सेंटर के निवेशकों से धोखाधड़ी करने के मामले में जीडीए ने मैसर्स इंदिरापुरम हैबिटेट सेंटर प्राइवेट लिमिटेड का फाइनेंशियल ऑडिट कराने की सिफारिश की है। इसके लिए उत्तर प्रदेश भू-संपदा विनियाकम प्राधिकरण (यूपी-रेरा) को पत्र भेज दिया गया है। कंपनी पर निवेशकों से धनराशि लेकर आवंटित संपत्तियों का कब्जा ने देने का आरोप है। गंभीर आरोप यह लगा है कि एक संपत्ति दो या उससे ज्यादा निवेशकों को बेच दी गई। जिन निवेशकों ने पता चलने पर धनराशि वापिस मांगी उन्हें पोस्ट डेटेड चेक दिए गए। जो अब तक कैश नहीं हो पाए हैं। कंपनी ने जीडीए के भी 47 करोड़ 6
जागरण संवाददाता, गाजियाबाद : इंदिरापुरम हैबिटेट सेंटर के निवेशकों से धोखाधड़ी करने के मामले में जीडीए ने मैसर्स इंदिरापुरम हैबिटेट सेंटर प्राइवेट लिमिटेड का फाइनेंशियल ऑडिट कराने की सिफारिश की है। इसके लिए उत्तर प्रदेश भू-संपदा विनियाकम प्राधिकरण (यूपी-रेरा) को पत्र भेज दिया गया है। कंपनी पर निवेशकों से धनराशि लेकर आवंटित संपत्तियों का कब्जा ने देने का आरोप है। गंभीर आरोप यह लगा है कि एक संपत्ति दो या उससे ज्यादा निवेशकों को बेच दी गई। जिन निवेशकों ने पता चलने पर धनराशि वापिस मांगी, उन्हें पोस्ट डेटेड चेक दिए गए। जो अब तक कैश नहीं हो पाए हैं। कंपनी ने जीडीए के भी 47 करोड़ 68 लाख 43 हजार 103 रुपये डकार लिए। बकाया राशि का अब तक भुगतान नहीं किया है। जीडीए ने पहली बार किसी का फाइनेंशियल ऑडिट कराने की सिफारिश यूपी-रेरा से की है। 2005 आवंटित हुई थी भूमि
जीडीए ने हैबिटेट सेंटर बनाने के लिए मैसर्स इंदिरापुरम हैबिटेट सेंटर प्राइवेट लिमिटेड को अक्टूबर 2005 में नीलामी के जरिए 12.80 एकड़ भूमि आवंटित की थी। लीज डीड में 50 प्रतिशत हिस्से में सामाजिक एवं सांस्कृतिक उपयोग (कम्युनिटी ऑडिटोरियम, क्लब), 30 प्रतिशत भूमि पर रीक्रिएशनल (मल्टीप्लेक्स छोड़ कर स्विमिग पूल, गेमिग जोन आदि) और 20 प्रतिशत पर वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए निर्माण करने की अनुमति दी गई थी। 71 करोड़ 37 लाख 40 हजार रुपये में आवंटन किया गया था। 25 प्रतिशत राशि जमा कराकर भूमि का कब्जा प्राप्त किया। बाकी 75 प्रतिशत आठ छमाही किस्तों में 12 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान करना तय हुआ था। जिसे कंपनी ने नियत वक्त पर अदा नहीं किया। व्यवसायिक निर्माण किया ज्यादा
कंपनी पर भू-उपयोग और हैबिटेट सेंटर के आवंटन की शर्तों का उल्लंघन करने का आरोप है। जीडीए ने जांच में पाया है कि शर्तों का उल्लंघन किया गया है। व्यवसायिक निर्माण तय अनुपात से ज्यादा कर लिया गया है। इससे बाकी सुविधाएं कम हो जाएंगी। कंपनी पर आरोप है कि हैबिटेट सेंटर बनाने में सामाजिक और सांस्कृतिक उपयोग की जमीन कम छोड़ी गई है। री-शेड्यूलिग में उलझाए रखा, नहीं किया भुगतान
जीडीए को उलझाए रखने के लिए कंपनी ने शासन की री-शेड्यूलिग नीति का खूब फायदा उठाया। जब-जब जीडीए ने कंपनी से बकाया राशि मांगी। कंपनी री-शेड्यूलिग के लिए शासन पहुंच गई। उनकी अर्जी पर जून 2009 से नवंबर 2013 के बीच तीन बार री-शेड्यूलिग कर मूल, ब्याज और दंड ब्याज समेत भुगतान की राशि किस्तों में अदा करने का आदेश शासन ने दिया। जून 2017 तक कंपनी को तय शर्तों पर पूर्ण भुगतान करना था। इससे पहले ही मार्च 2017 में कंपनी ने एकमुश्त समझौता (ओटीएस) की अर्जी शासन में लगाई। उस पर बकाया का निर्धारण कर दिया गया। फिर भी किस्तें जमा नहीं हुईं तो 9 नवंबर 2017 में जीडीए ने मूल और ब्याज जोड़ कर 113.34 करोड़ रुपये बकाया की आरसी जारी कर दी। सीलिग भी की गई।
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कोर्ट से नहीं मिली राहत
आरसी के खिलाफ कंपनी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट में अपना पक्ष रखा था कि जीडीए ने बकाया की गणना में गलती की है। ब्याज समेत बकाया मात्र 70.62 करोड़ रुपये बनता है। इस पर हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि हैबिटेट सेंटर के प्रबंधन द्वारा स्वीकार किया गया बकाया ब्याज के साथ जमा करा दिया जाए। जिस पर प्रबंधन ने 70.62 करोड़ रुपये एकमुश्त जमा करा दिया। इस पर हैबिटेट सेंटर की सील खोल दी गई। बाकी राशि के लिए वर्ष 2017 में शासन से फिर री-शेड्यूलिग कराई गई। उसके हिसाब से 49 करोड़ 31 लाख 55 हजार 991 रुपये बकाया बना। इसका भुगतान न होने पर जिला प्रशासन ने जुलाई 2018 में फिर से हैबिटेट सेंटर के फेज-एक को सील कर दिया था। फिर कंपनी ने कुछ भुगतान किया। दुकानदारों की अपील पर सील को खोल दिया गया। नवंबर 2018 में कंपनी पर 48 लाख 68 लाख 43 हजार 103 रुपये बकाए की गणना की गई। तारीख के साथ छह त्रैमासिक किस्तें बनाई गईं। उसमें से मात्र एक करोड़ रुपये कंपनी ने दिया। अब भी 47 लाख 68 लाख 43 हजार 103 रुपये बकाया है।
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मैसर्स इंदिरापुरम हैबिटेट सेंटर प्राइवेट लिमिटेड ने इंदिरापुरम हैबिटेट सेंटर में निवेश करने वालों के साथ धोखाधड़ी की है। कई शिकायतें आई हैं। एक संपत्ति दो और उससे ज्यादा निवेशकों को बेची गई हैं। आवंटन की शर्तों का उल्लंघन करने के साथ जीडीए को बकाया राशि भी अदा नहीं की है। इसे देखते हुए कंपनी का फाइनेंशियल ऑडिट कराने के लिए यूपी-रेरा को पत्र भेजा है।
- कंचन वर्मा, वीसी, जीडीए