दल मिले पर दिलों के मिलने से बनेगी कुछ बात
सत्ता के गलियारों में दो धुर विरोधी दलों के दिल मिलने से दोस्ती के तराने गूंज रहे हैं। तेरा साथ है सबसे प्यारा ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे जैसे गीत सपा और बसपा के कार्यकर्ता गुनगुनाते दिख जाते हैं लेकिन लोकसभा चुनाव में काम दोस्ती दिखाने भर से नहीं चलने वाला है दोस्ती को निभाना भी पड़ेगा। सीटों के बंटबारे के बाद सपा का उम्मीदवार गाजियाबाद से गठबंधन का चेहरा होगा
शोभित शर्मा, गाजियाबाद : सत्ता के गलियारों में दो धुर विरोधी दल मिलने से दोस्ती के तराने गूंज रहे हैं। तेरा साथ है सबसे प्यारा, ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे, जैसे गीत सपा और बसपा के कार्यकर्ता गुनगुनाते दिख जाते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में काम दोस्ती दिखाने भर से नहीं चलने वाला है। दलों के साथ-साथ दिलों का मिलना भी जरूरी है। सीटों के बंटवारे के बाद सपा का उम्मीदवार गाजियाबाद से गठबंधन का चेहरा होगा, इसको देखते हुए समीकरण को लेकर गणित लगना भी शुरू हो गया है।
पिछले दिनों नगर निगम कार्यकारिणी के चुनाव में जो कुछ देखने को मिला, उससे मिलते दिलों की दूरी ज्यादा जाहिर हुई है। इस तरह का भीतरघात दोनों दलों के लिए भारी पड़ सकता है। बता दें कि पिछले दिनों नगर निगम कार्यकारिणी सदस्यों का चुनाव चर्चा का केंद्र इसलिए रहा कि गठबंधन की कुल 23 वोट में से गठबंधन के उम्मीदवार बसपा के संदीप तोमर नौ ही वोट हासिल कर सके। इस चुनाव में चार भाजपा और दो कांग्रेस से नगर निगम कार्यकारिणी के सदस्य चुने गए। ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के दिलों को मिलाना बेहद जरूरी है। यह जिम्मेदारी पदों पर आसीन जिन नेताओं पर होनी चाहिए, वो भी एकजुटता को लेकर खास उत्साह अब तक नहीं दिखा पाए हैं।
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में दाखिल हुई थी लेकिन तब गाजियाबाद की पांच विधानसभा सीटों में से चार पर बसपा के प्रत्याशी जीते थे। सदर सीट से सुरेश बंसल, लोनी से जाकिर अली, साहिबाबाद से अमरपाल शर्मा और मुरादनगर से वहाब चौधरी ने जीत का डंका बजाया था। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में मोदीनगर से मास्टर राजपाल और मुरादनगर से राजपाल त्यागी बसपा के टिकट पर जीत हासिल कर चुके हैं। हांलाकि राजपाल त्यागी अब बसपा में नहीं हैं, लेकिन बसपा के सभी पूर्व विधायक अगर सक्रियता दिखाएं तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर देकर साइकिल को रफ्तार दे सकते हैं। इसके इतर सपा को भी गठबंधन धर्म निभाने के लिए आगे आना होगा और साथ मजबूरी का गठबंधन वाली सोच छोड़कर बसपा कार्यकर्ताओं को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा।