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बड़े अस्पताल के लिए एजेंट का काम कर रहे झोलाछाप डाक्टर

नोट राम भरोसे इलाज लोगो के साथ लगाएं फोटो 26 एसबीडी 8 व 9 - तीस से पचास प्रतिशत तक मिल

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 07:46 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 07:46 PM (IST)
बड़े अस्पताल के लिए एजेंट का काम कर रहे झोलाछाप डाक्टर
बड़े अस्पताल के लिए एजेंट का काम कर रहे झोलाछाप डाक्टर

नोट: राम भरोसे इलाज लोगो के साथ लगाएं फोटो 26 एसबीडी 8 व 9 - तीस से पचास प्रतिशत तक मिलता है कमीशन संवाद सहयोगी, लोनी : शहर की विभिन्न कालोनियों और देहात में खुले छोटे-छोटे क्लीनिक दरअसल बड़े अस्पतालों के लिए एजेंट का काम कर रहे हैं। मरीजों को अस्पताल तक पहुंचाने में झोलाछाप डाक्टरों को करीब तीस से पचास प्रतिशत तक कमीशन मिलता है। इलाज के लिए झोलाछाप डाक्टर के पास गए मरीज को अपनी बोली लगने का पता भी नहीं लग पाता है।

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देश की राजधानी दिल्ली से सटे होने के बावजूद क्षेत्र में चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है। लोग बीमार होने पर पड़ोस में खुले क्लीनिक पर झोलाछाप डाक्टर से इलाज कराते है। लोगों का कहना है कि चंद रुपये कमाने की लालच में ये डाक्टर लोगों को इलाज के लिए अपनी साठगांठ वाले बड़े अस्पताल में भर्ती करा देते है, जहां इलाज के नाम पर लापरवाह, अप्रशिक्षित और अनुभवहीन डाक्टर लोगों के पैसे के साथ-साथ जिदगी से भी खेलते हैं। वहीं लापरवाही के चलते कई मरीज असमय ही काल के गाल में समा चुके हैं। मरीज की मौत हो जाने पर ये डाक्टर क्लीनिक छोड़कर फरार हो जाते हैं। केस - 1 ससुराल चली गई डाक्टर साहिबा, नाम पर चल रहा क्लीनिक क्षेत्र की राम विहार कालोनी में छोटे से क्लीनिक में बोर्ड पर स्त्री रोग विशेषज्ञ का नाम लिखा हुआ है। लोगों ने बताया कि करीब आठ वर्ष पूर्व महिला डाक्टर का विवाह हो गया था। जिसके बाद वह क्लीनिक छोड़कर चली गई थी। लोगों की मानें तो क्लीनिक में बैठने वाले डॉक्टर साहब ने उनका नाम हटाने की जरूरत भी नहीं समझी। डॉक्टर साहब अपने यहां आने वाले मरीजों को उपचार के लिए दूसरे बड़े अस्पताल में रेफर कर देते हैं और अस्पताल से कमीशन मिल जाता है।

------------ केस - 2 पुराने लाल रंग के निशान से चल रहा काम देहात क्षेत्र में क्लीनिक पर रेड क्रास के निशान बने हुए हैं। क्लीनिक के बाहर डाक्टर साहब की डिग्री का बोर्ड भी नहीं है। लोग लाल रंग के निशान को देखकर क्लीनिक पर इलाज कराने पहुंच जाते हैं। झोलाछाप डाक्टर पहले मरीजों को दवाई देते हैं। बाद में मरीज की हालत बिगड़ने पर अपनी जान पहचान वाले बड़े अस्पताल में भर्ती करा देते हैं, जहां मरीज को लगी बोली का पता भी नहीं चलता।


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