एनएफएच सर्वे: बधाई हो..जिले में 1,000 बेटों के मुकाबले 1,182 बेटियां
अभिषेक सिंह गाजियाबाद नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस)- पांच की रिपोर्ट में जिले में बा
अभिषेक सिंह, गाजियाबाद : नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस)- पांच की रिपोर्ट में जिले में बाल लिगानुपात में बेटों के मुकाबले बेटियों की संख्या बढ़ी है। पिछले पांच साल में जिले में बेटों से ज्यादा बेटियों ने जन्म लिया है। 1,000 बेटों के मुकाबले जन्म लेने वाली बेटियों की संख्या 1,182 हो गई है। जबकि पांच साल पहले हुए सर्वें में बेटियों की संख्या बेटों के मुकाबले कम थी। 1,000 बेटों के मुकाबले बेटियों की जन्मदर 907 थी। सरकारी योजनाओं का मिला लाभ: जिला प्रोबेशन अधिकारी विकास चंद्र ने बताया कि बेटियों के पालन पोषण के साथ ही उनकी शिक्षा के लिए सरकार ने कई योजनाएं चलाई हैं। इनमें ही मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना भी शामिल है। जिसके तहत बेटियों को छह किश्तों में 15 हजार रुपये दिए जाते हैं। बेटियों की शादी के लिए मुख्यमंत्री कन्या सामूहिक योजना भी संचालित की जाती है। अलग-अलग विभाग द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिसका बेटियों को लाभ मिल रहा है। जिसका असर सर्वे के बाद आई रिपोर्ट में दिखाई दे रहा है।
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नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-21
लिगानुपात: प्रति एक हजार पुरुष - 930 महिलाएं
बाल लिगानुपात: प्रति एक हजार बालक - 1,182 बालिकाएं
15 साल से कम उम्र के बच्चों की आबादी - 24.9 फीसद
पांच साल से कम उम्र के बच्चों का जन्म प्रमाण पत्र पंजीकृत - 86.8 फीसद
छह साल से अधिक उम्र की बालिकाएं, जिन्होंने स्कूल में पढ़ाई की हो - 78.9 फीसद
महिला साक्षरता दर - 80.1 फीसद
10 या उससे अधिक साल तक स्कूल में पढ़ाई करने वाली महिलाएं - 55.2 फीसद नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16
लिगानुपात: प्रति एक हजार पुरुष - 899 महिलाएं
बाल लिगानुपात: प्रति एक हजार बालक - 907 बालिकाएं
15 साल से कम उम्र के बच्चों की आबादी - 30.3 फीसद
पांच साल से कम उम्र के बच्चों का जन्म प्रमाण पत्र पंजीकृत - 69.9 फीसद
छह साल से अधिक उम्र की बालिकाएं, जिन्होंने स्कूल में पढ़ाई की हो - 74.1 फीसद
महिला साक्षरता दर - 91.5 फीसद
10 या उससे अधिक साल तक स्कूल में पढ़ाई करने वाली महिलाएं - 43.8 फीसद
जिले में किए गए विशेष प्रयास: जिले में बेटियों के प्रति अभिभावकों की सोच को बदलने के लिए विशेष प्रयास किए गए। मुख्य विकास अधिकारी अस्मिता लाल ने बेटियों के नाम से घर की नेम प्लेट लगवाने का अभियान चलवाया। बेटियों को कानून और अपने अधिकारी के प्रति जागरूक करने के लिए बोर्ड गेम तैयार कराया। इसके साथ ही नेस्टिंग डाल के माध्यम से यह बताया गया कि बेटियां अब किसी भी क्षेत्र में बेटों से कम नहीं है। सिर्फ बेटे ही नहीं बेटी भी कुलदीपक हो सकती है, इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाया गया।
बयान
नतीजे देखकर बहुत खुशी महसूस हुई है। नतीजे यह प्रमाणित करते हैं कि बेटियों के प्रति समाज का व्यवहार बदल रहा है। इसकी वजह हर क्षेत्र में बेटियों का बुलंदियों को छूना है। जिस कारण अब बेटियों को बोझ नहीं समझा जाता है। बेटियों ने साबित किया है कि वह किसी भी क्षेत्र में बेटों से कम नहीं हैं, वह रोल माडल बनी हैं। - अस्मिता लाल, मुख्य विकास अधिकारी।
ये बहुत शुभ संकेत है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान का असर हुआ है। समाज प्रगति के पथ पर आगे बढ़ेगा। बेटियां सशक्त होंगी तो महिला अपराध के आंकड़ों में भी कमी आएगी। - डा. कमलेश भारद्वाज, एसोसिएट प्रोफेसर, समाजशास्त्र विभाग, शंभू दयाल डिग्री कालेज