सीता से जो चल पड़ा वही बना दस्तूर, अग्नि परीक्षा दे रहा पग-पग पर ¨सदूर
शंभू दयाल डिग्री कॉलेज में किसलय काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि डॉ. धनंजय ¨सह ने कहा कि यह अच्छी बात है कि आज नवांकुर को स्थापित कवियों के साथ मंच साझा करने का अवसर मिल रहा है। उन्होंने इस तरह के कार्यक्रमों की नियमितता पर भी बल दिया। उन्होंने कविता पढ़ी Þतुमको अपना कह कर मैंने अपना अपनापन दे डाला, तन पर तो अधिकार नहीं था मैंने अपना मन दे डाला। डॉ. रमा ¨सह ने पढ़ा सीता से जो चल पड़ा वही बना दस्तूर, अग्नि परीक्षा दे रहा पग पग पर ¨सदूर। सीमा ¨सह ने फरमाया यह खुशबू बागबां की परवरिश से है, वहां हम चुप रहे जहां देखा सबकी भलाई है।
जासं, गाजियाबाद: शंभू दयाल डिग्री कॉलेज में किसलय काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि डॉ. धनंजय ¨सह ने कहा कि यह अच्छी बात है कि आज नवांकुर को स्थापित कवियों के साथ मंच साझा करने का अवसर मिल रहा है। उन्होंने इस तरह के कार्यक्रमों की नियमितता पर भी बल दिया। उन्होंने कविता पढ़ी 'तुमको अपना कह कर मैंने अपना अपनापन दे डाला, तन पर तो अधिकार नहीं था मैंने अपना मन दे डाला।' डॉ. रमा ¨सह ने पढ़ा 'सीता से जो चल पड़ा वही बना दस्तूर, अग्नि परीक्षा दे रहा पग पग पर ¨सदूर।' सीमा ¨सह ने प्रवीण कुमार ने यह जो मेरा शहर है के माध्यम से शहरीकरण के बदलते स्वरूप का चित्रण किया। जसवीर त्यागी ने अपनी छोटी पंक्तियों अपने शहर में हम अपने घर में रहते हैं, दूसरे शहर में हमारा घर हमारे भीतर रहता है से तीखे बाण चलाए। प्रेम भारद्वाज, सुश्री सुदेश, डॉ. आनंद कुमार दुबे, डॉ. गीता पांडे, अनिल चौहान के साथ साथ कार्यक्रम की संयोजक डॉ. पूनम ¨सह की अब आग से लिखूंगी अगली इबारत पंक्तियां भी भरपूर सराही गईं।