प्रदूषण की चादर में ढक रहा मेरा गाजियाबाद..
गाजियाबाद के 43वें स्थापना दिवस पर शहर के साहित्यकार कवि वरिष्ठ पत्रकारों समेत शहर के लोग बढ़ते प्रदूषण को लेकर चितित हैं। उनका कहना है कि प्रदूषण की चादर में शहर खोता जा रहा है। लोग प्रदूषण से बीमार हो रहे हैं। इसके अलावा विकास की पटरी पर तेजी से दौड़ रहे इस शहर को लोगों का खयाल भी रखना चाहिए। इसके अलावा प्रदेश की सरकार को प्रदूषण नियंत्रण करने के लिए विशेष तरह की प्लानिग करनी होगी जिसके बाद ही शहर की आबोहवा बेहतर हो पाएगी।
जागरण संवाददाता, गाजियाबाद : गाजियाबाद के 43वें स्थापना दिवस पर शहर के साहित्यकार, कवि, वरिष्ठ पत्रकार समेत शहर के लोग बढ़ते प्रदूषण को लेकर चितित हैं। उनका कहना है कि प्रदूषण की चादर में शहर खोता जा रहा है। लोग प्रदूषण से बीमार हो रहे हैं। इसके अलावा विकास की पटरी पर तेजी से दौड़ रहे इस शहर को लोगों का खयाल भी रखना चाहिए। इसके अलावा प्रदेश की सरकार को प्रदूषण नियंत्रण करने के लिए विशेष तरह की प्लानिग करनी होगी, जिसके बाद ही शहर की आबोहवा बेहतर हो पाएगी।
शहर के लोगों का कहना है कि 14 नवंबर 1971 से पहले गाजियाबाद केवल एक तहसील था, जिसका जिला मेरठ होता था। इस शहर में तमाम खेत व जंगल थे, लेकिन विकास की पटरी पर एक्सप्रेस ट्रेन की तरह दौड़ रहा गाजियाबाद लगातार अपनी हरियाली को खोता जा रहा है। इससे लोगों को दिक्कत हो रही है। शहर के बुजुर्ग व बच्चे बीमार हो रहे हैं, जिन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही है। इसके अलावा लोगों का कहना है कि गाजियाबाद में लगातार अपराध बेलगाम हो रहा है। इसके चलते हर व्यक्ति दहशत में है, जोकि इस शहर में रहता है। शहर की सड़कों पर युवतियों से छेड़छाड़, लूट स्नैचिग होना आम बात हो गई है। लोगों की सरकार व जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों से अपील है कि वह गाजियाबाद को विकास के साथ-साथ उसके पुराने स्वरूप में लौटा दें।
---
वर्ष 1993 में गाजियाबाद की आबादी बहुत ही कम दी, जिसके चलते शहर में बहुत शांति थी। इसके बाद से लगातार इस शहर को देखता हुआ आ रहा हूं। वर्तमान में शहर का हर नागरिक प्रदूषण से होने वाली बीमारियों की चपेट में आता जा रहा है। पहले शहर में बहुत हरियाली थी, जिसके चलते शहर प्रदूषण मुक्त रहता था। अब सरकारों को इस ओर सूचना चाहिए। --
जेएल रैना, समाज शास्त्री
--
लगातार शहर का कल्चर बदलता चला गया है। वर्तमान में प्रदूषण के कारण शहर अपनी पहचान खोता हुआ जा रहा है। लोगों को पेड़ लगाकर वातावरण के बारे में सोचना चाहिए।
- कुलदीप तलवार, वरिष्ठ पत्रकार
--
शहर में हो रहे विकास कार्यों के चलते लगातार गाजियाबाद का दम घुट रहा है। विकास के नाम पर केवल अब तक विनाश हो रहा है, जिसके चलते प्रदूषण एक बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है। लोग भाईचारा खोते हुए जा रहे हैं। सरकारों को नगरवासियों के हितों के बारे में सोचना चाहिए।
- सेरा यात्री, वरिष्ठ साहित्यकार
चार दरवाजों के बीच गाजियाबाद बसा था, जोकि धीरे-धीरे बढ़ता हुआ चला गया है। पहले लोग साइकिल से शहर में घूम लेते थे, लेकिन वर्तमान में बढ़ती गाड़ियों के चलते शहर में जाम लग रहा है। वहीं, शमशान घाट में रोजाना जल रही लकड़ियां प्रदूषण फैला रही हैं।
- कृष्ण मित्र, वरिष्ठ कवि