तुलसी निकेतन में एक भी फ्लैट रहने के लिए सुरक्षित नहीं
तुलसी निकेतन में एक भी फ्लैट रहने के लिए सुरक्षित नहीं है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की टीम ने त्रिस्तरीय जांच के बाद सौ फीसद फ्लैट जीर्ण घोषित कर दिए हैं। जांच रिपोर्ट में बताया कि भूकंप के हल्के झटके में इनमें रहने वालों को बड़ा नुकसान हो सकता है। सलाह दी है कि तोड़कर इनका दोबारा निर्माण कराया जाए। विशेषज्ञों का कहना है कि मरम्मत से फ्लैट को मजबूती नहीं मिलेगी। मरम्मत में इतनी लागत आएगी कि उससे कम खर्च में दोबारा निर्माण हो जाएगा। विश्वविद्यालय ने इस काम के लिए 23.5 लाख रुपये शुल्क लिया है।
जागरण संवाददाता, गाजियाबाद : तुलसी निकेतन में एक भी फ्लैट रहने के लिए सुरक्षित नहीं है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की टीम ने त्रिस्तरीय जांच के बाद सौ फीसद फ्लैट जीर्ण घोषित कर दिए हैं। जांच रिपोर्ट में बताया कि भूकंप के हल्के झटके में इनमें रहने वालों को बड़ा नुकसान हो सकता है। सलाह दी है कि तोड़कर इनका दोबारा निर्माण कराया जाए। विशेषज्ञों का कहना है कि मरम्मत से फ्लैट को मजबूती नहीं मिलेगी। मरम्मत में इतनी लागत आएगी कि उससे कम खर्च में दोबारा निर्माण हो जाएगा। विश्वविद्यालय ने इस काम के लिए 23.5 लाख रुपये शुल्क लिया है। विरोध के चलते करानी पड़ी जांच
जीडीए ने तुलसी निकेतन के सभी फ्लैट और दुकान तोड़ कर उनका दोबारा निर्माण कराने की योजना बनाई थी। यहां रहने वालों ने इस योजना का विरोध किया। लोगों ने तरह-तरह के आरोप लगाए। विरोध बढ़ने पर जीडीए ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की टीम से जांच कराई। ताकि, यह प्रमाणित हो जाए फ्लैट जीर्ण अवस्था में हैं या नहीं। भविष्य में सीएजी कोई सवाल उठाए तो इस रिपोर्ट के सहारे उसका जवाब देना भी आसान होगा। समय से पहले जीर्ण हुए फ्लैट
जीडीए ने तुलसी निकेतन को 1990 में बसाया था। इस कॉलोनी में 2004 ईडब्ल्यूएस व 288 एलआइजी फ्लैट है। 60 दुकानें बनी हैं। आवंटन के वक्त जीडीए ने फ्लैट और दुकान की आयु 60 वर्ष होने का दावा किया था। निर्धारित आयु से 31 साल पहले फ्लैट जर्जर हो गए। दो बार छत गिरने से हादसों मे लोग घायल हो गए। ऐसा क्यों हुआ? इस बारे में जीडीए बोर्ड को अवगत कराया जाएगा। साथ ही विश्वविद्यालय की जांच रिपोर्ट बोर्ड सदस्यों के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी। जीडीए अधिकारियों का कहना है कि आवंटन के बाद फ्लैट के रखरखाव की जिम्मेदारी आवंटी की होती। उन्होंने रखरखाव नहीं किया, इस कारण फ्लैट जर्जर हो गए। यह भी बताया कि अब इस कॉलोनी में 1822 फ्लैट में मूल आवंटी की जगह दूसरे लोग अटॉर्नी पर रह रहे हैं।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की टीम ने तुलसी निकेतन के सभी फ्लैट और दुकान तोड़कर दोबारा बनाने की सलाह दी है। उन्होंने जांच में पाया कि सभी फ्लैट की मरम्मत कराना उचित नहीं। दोबारा बनाने से ज्यादा लागत मरम्मत कराने में आएगी। इस रिपोर्ट को बोर्ड बैठक में सदस्यों के समक्ष रखा जाएगा। साथ ही तुलसी निकेतन के आवंटियों को भी रिपोर्ट से अवगत कराया जाएगा।
- कंचन वर्मा, वीसी, जीडीए