निडर होकर मरीजों की सेवा में जुटी हैं डा. पवन
मदन पांचाल गाजियाबाद यूं तो जिले में अनेक अफसर कोरोना जैसी महामारी को काबू में करने के
मदन पांचाल, गाजियाबाद :
यूं तो जिले में अनेक अफसर कोरोना जैसी महामारी को काबू में करने के लिए दिन-रात जी जान से जुटे हुए हैं लेकिन महिला सशक्तीकरण की मजबूत मिसाल देखनी है तो जिला महिला अस्पताल में चले जाइए। टीकाकरण केंद्र को संचालित कर रही डा.पवन के चेहरे पर कोरोना का तनिक डर नहीं है। वह भी तब जबकि अप्रैल 2020 में उनके पति संक्रमित हो गए थे। खुद ही उनका इलाज करके स्वस्थ किया। कांटेक्ट ट्रेसिग, टेस्टिग एवं ट्रीटमेंट के बल पर एक साल में पांच हजार से अधिक संक्रमित को सही समय पर कोविड अस्पतालों में भर्ती करवाकर उनकी जान बचाने वाली पवन रोज भीड़ को कंट्रोल करते हुए उनको टीका लगा रही हैं। 16 जनवरी से अब तक वह दस हजार से अधिक लोगों को कोरोनारोधी टीका लगा चुकी हैं। कोरोना आते ही डा. पवन की ड्यूटी कोविड में लग गई थी।
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ड्यूटी कहीं तो काम कहीं
स्वास्थ्य विभाग ने यूं तो नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पंचवटी में डा.पवन कुमारी की नियुक्ति कर रखी है लेकिन उनकी मेहनत का ही असर है कि काम कई जगहों पर कर रही हैं। 22 मार्च 2020 में सबसे पहले उनकी ड्यूटी सुंदरदीप में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटर में लगाई गई। इसके बाद आइएमएस में भेज दिया गया। यहां मरीजों की देखभाल एवं कोविड अस्पताल में भर्ती कराने का काम किया। फिर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र डासना में भेज दिया गया। यहां पर दस महिलाओं की डिलीवरी कराई। प्रभारी संक्रमित हो गए तो केंद्र को बंद कर दिया गया। कांटेक्ट ट्रेसिग में सात हजार लोगों की सेहत का हालचाल पूछने में लगी रहीं। अब जिला महिला अस्पताल व एमएमजी में टीका लगा रहीं हैं।
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बच्चों को उपहार देकर बांटीं खुशियां
क्वारंटाइन सेंटरों में संक्रमित के स्वजनों की देखभाल करते समय करीब पचास बच्चों की जांच कराना और उन्हें स्वस्थ होने पर घर भिजवाना उनकी ड्यूटी का हिस्सा रहा। इस दौरान सभी बच्चों को खुद ही उपहार तक बांटे। बच्चे खुश हुए तो स्वजनों ने मोबाइल पर ही उनकी खूब तारीफ की।
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बच्चों के लिए नहीं निकल पाता समय
डा.पवन कुमारी बताती हैं कि उनके बेटे तेजस्वी और तनिष्क के साथ बैठने तक का समय नहीं मिला है। एक साल में दस दिन ही बच्चों के साथ घर में डिनर किया है। उनके पति डा. विनोद कुमार कोविड अस्पताल साहिबाबाद में तैनात है। मां शोभा देवी से जरूर मोबाइल पर बात कर लेती हैं। कानपुर से एमबीबीएस करने के बाद 2009 में स्वास्थ्य विभाग में उनकी नौकरी लगी।वह बताती हैं कि कोरोना का डर दिमाग से गायब हो गया है। मरीजों की जान बचाना एवं लोगों को टीका लगाना ही उनका लक्ष्य है।