छत्तीसगढ़, झारखंड व राजस्थान में बैठे अपराधी एनसीआर के लोगों से कर रहे ठगी
आशुतोष गुप्ता गाजियाबाद गाजियाबाद समेत दिल्ली एनसीआर साइबर ठगों के आतंक की जद में है। स
आशुतोष गुप्ता, गाजियाबाद
गाजियाबाद समेत दिल्ली एनसीआर साइबर ठगों के आतंक की जद में है। साइबर ठग तेजी से प्लास्टिक मनी के जरिये लोगों को चूना लगा रहे हैं। साल-दर-साल इनका आतंक कई गुना बढ़ता जा रहा है लेकिन पुलिस समेत अन्य एजेंसियां इन पर काबू नहीं कर पा रही है। जांच में आया है कि छत्तीसगढ़, झारखंड व राजस्थान में बैठे हुए अपराधी एनसीआर में ठगी का यह धंधा वहीं से संचालित कर रहे हैं। यही कारण है कि आनलाइन ठगी करने वाले गिरोह एनसीआर में तेजी से पैर पसार रहे हैं और मासूम लोगों को निशाना बनाकर उनकी मेहनत की गाढ़ी कमाई पर हाथ साफ कर रहे हैं। एक दिन में पांच से छह लोग एटीएम की ठगी करने वाले गिरोह के शिकार हो रहे हैं। साइबर अपराधी विभिन्न माध्यमों से ठगी कर लोगों को चूना लगा रहे हैं।
गाजियाबाद पर निगाह डालें तो साइबर ठगी जिले में सबसे अधिक होने वाले अपराधों में दूसरे पायदान पर आ गया है। साइबर ठगों की निगाह आपकी प्लास्टिक मनी (डेबिट, क्रेडिट कार्ड) व खातों पर है। पल भर में गोपनीय नंबरों के माध्यम से ठग खाते में जमा रकम पर हाथ साफ कर देते हैं। इसके चलते लोगों को आर्थिक नुकसान तो झेलना पड़ ही रहा है, साथ ही थानों के चक्कर भी काटने पड़ रहे हैं। मोबाइल फोन पर ट्रांजेक्शन का मैसेज आता है तो ठगी का पता चलता है। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब पांच से छह लोगों के खाते से रकम निकलने की घटना न होती हो। खास बात यह है कि साइबर ठगी की आए दिन हो रही घटनाओं के बावजूद लोग आसानी से ठगों की बातों में आ जाते हैं और उनके शिकार बन जाते हैं। सावधानी से ही ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता है।
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फोन पर बैंककर्मी बनकर लेते हैं जानकारी साइबर ठग मोबाइल फोन पर काल कर अपने को बैंक अधिकारी बताते हैं और बहुत ही शातिराना अंदाज से बात करते हैं। वह ग्राहक को आधार कार्ड खाते से लिक करने व एटीएम कार्ड ब्लाक होने की बात कहकर, केवाइसी कराने के बहाने कार्ड के गोपनीय नंबर जानने का प्रयास करते हैं। ऐसे में एटीएम कार्ड धारक यह नहीं समझ पाता कि काल करने वाला व्यक्ति ठग है या बैंक अधिकारी और विश्वास में आकर अपने कार्ड की गोपनीय जानकारी साझा कर लेता है, इसके बाद ठग खातों से पैसा निकाल लेते हैं।
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बैंकों का एकत्र करते हैं डाटा कार्डधारक को फोन करने से पहले गिरोह विभिन्न बैंकों से डाटा एकत्र करते हैं और इसके बाद काल करते हैं। गिरोह के सदस्यों के पास फोन करने से पहले कार्डधारक के बारे में अधिकांश जानकारी होती है। इसके चलते कार्डधारक जल्द झांसे में आ जाते हैं। इस धंधे में बैंक कर्मचारियों की भूमिका से भी इन्कार नहीं किया जा सकता क्योंकि ठगों को बैंक का डाटा कर्मचारियों द्वारा ही उपलब्ध कराया जाता है।
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एटीएम बूथ के आसपास खड़े होते हैं ठग पूर्व की कई घटनाओं में यह भी देखने में आया है कि ठग एटीएम बूथ के आसपास खड़े होते हैं और ऐसे व्यक्ति की तलाश करते हैं जो एटीएम मशीन की बहुत अच्छी जानकारी नहीं रखता। ऐसे में ठग मदद के बहाने व्यक्ति का पासवर्ड तो जान ही लेते हैं साथ ही बड़ी चतुराई से एटीएम कार्ड भी बदल लेते हैं और एटीएम मशीन में तकनीकी खामी बताकर या तो व्यक्ति को कम पैसा निकालकर देते हैं अथवा वापस भेज देते हैं। वापस जाते ही वह खाते में पड़ी रकम उड़ा लेते हैं। अधिकांश मामलों में ठगों द्वारा एटीएम कार्ड बदलने या क्लोन करने की बात भी सामने आई है।
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साइबर ठगों से बचने के लिए सबसे बेहतर उपाय है सावधानी। थोड़ी सी सावधानी बरत कर ठगी की घटना से बचा जा सकता है। अपने एटीएम कार्ड व खाते की जानकारी किसी से साझा नहीं करनी चाहिए। इसके साथ ही समय-समय पर अपना पासवर्ड बदलते रहना चाहिए।
ईशान सिन्हा, एडवाइजर साइबर क्राइम एवं इंटेलीजेंस
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एटीएम से ठगी की घटनाओं के बाद पुलिस तत्परता से काम करती है। पूर्व में हुई कई घटनाओं में पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर पीड़ितों का पैसा भी वापस दिलवाया और आरोपियों को भी गिरफ्तार किया। इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए लोगों को भी जागरुक होना पड़ेगा।
अभय कुमार मिश्र, नोडल अधिकारी साइबर सेल एवं सीओ इंदिरापुरम