पिता संग मासूम अभिनव-रिद्धिमा ने भी दी कोरोना को मात
अभिषेक सिंह साहिबाबाद उम्र कोई भी हो मन में विश्वास है तो कोरोना पर जीत निश्चित है। इसका
अभिषेक सिंह, साहिबाबाद: उम्र कोई भी हो, मन में विश्वास है तो कोरोना पर जीत निश्चित है। इसका प्रमाण दो बच्चों के कोरोना संक्रमित से कोरोना विजेता बनने तक का सफर है। गाजियाबाद के बम्हैटा स्थित आदित्य वर्ल्ड सिटी निवासी दस साल की रिद्धिमा और उनके छह साल के भाई अभिनव ने कोरोना को ऐसे हराया, जैसे की कोरोना उनके लिए मोबाइल को कोई ऐसा गेम हो जिसके वह चैंपियन हैं। दोनों बच्चों का आत्मविश्वास इतना मजबूत था कि उन्होंने कोविड अस्पताल में इलाज के दौरान ही स्कूल टेस्ट भी दिया, जिसमें दोनों भाई-बहन शानदार अंकों से पास हुए। करीब दस दिन अस्पताल में भर्ती रहे दोनों बच्चे कोरोना से एक पल के लिए भी नहीं डरे। पिता को भी हुआ था कोरोना: रिद्धिमा और अभिनव के पिता सुनील कुमार महतो ईएसआइसी के हेड क्वार्टर में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। सुनील कुमार महतो ने बताया कि उनको कार्यस्थल पर ही किसी संक्रमित साथी के संपर्क में आने के कारण कोरोना का संक्रमण हो गया था। शुरू में पता नहीं चला, बाद में लक्षण दिखने पर उन्होंने टेस्ट करवाया तो कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि हुई। जिसके बाद 12 जून को वह उपचार के लिए साहिबाबाद के राजेंद्र नगर स्थित ईएसआइ अस्पताल में भर्ती हुए। सुनीत के परिवार में पत्नी और तीन बच्चे हैं, जब उनका कोरोना टेस्ट किया गया तो सुनील की बेटी रिद्धिमा और बेटे अभिनव के भी कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि हुई, दोनों बच्चों को ईएसआई अस्पताल में 17 जून को भर्ती करवाया गया, जहां पर दस दिन उनका उपचार चला। 26 जून को पिता के साथ रिद्धिमा और अभिनव ने भी कोरोना को मात दी और स्वस्थ होकर घर लौट आए। अस्पताल में माहौल अच्छा, डॉक्टर ने बढ़ाया हौसला: सुनील कुमार महतो ने बताया कि ईएसआइ अस्पताल में माहौल बहुत अच्छा रहा। डॉक्टर की टीम लगातार बच्चों का हौसला बढ़ा रही थी। बच्चों को एक पल के लिए भी यह महसूस नहीं होने दिया गया कि वह गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। अस्पताल में बच्चे मोबाइल के जरिये मनोरंजन भी करते रहे और पढ़ाई भी करते रहे। दोनों बच्चे रयान इंटरनेशन स्कूल में पढ़ते हैं, रिद्धिमा पांचवी कक्षा में है जबकि अभिनव पहली कक्षा में है। दोनों का ऑनलाइन स्कूल टेस्ट उस वक्त हुआ, जब वह दोनों अस्पताल में थे। बिना कॉपी, किताब के ही पढ़ाई कर दोनों बच्चों ने स्कूल टेस्ट दिया और अच्छे नंबरों से पास हुए हैं।