नोएडा इलेक्ट्रॉनिक सिटी से मोहननगर तक मेट्रो कॉरिडोर का निर्माण पीपीपी मॉडल पर!
नोएडा इलेक्ट्रॉनिक सिटी से मोहननगर तक प्रस्तावित मेट्रो कॉरिडोर का निर्माण जीडीए को पीपीपी मॉडल पर कराना पड़ सकता है। शासन ने जीडीए समेत सभी प्राधिकरणों को पत्र भेज स्पष्ट कर दिया कि मेट्रो परियोजनाओं का निर्माण कार्य पीपीपी मॉडल पर कराया जाए। जिससे राज्य सरकार पर वित्तीय भार न पड़े। दिल्ली में एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन पीपीपी मॉडल का नमूना है। तेलंगाना में भी इसी तर्ज पर मेट्रो कॉरिडोर बनाए गए हैं।
जागरण संवाददाता, गाजियाबाद : नोएडा इलेक्ट्रॉनिक सिटी से मोहननगर तक प्रस्तावित मेट्रो कॉरिडोर का निर्माण जीडीए को पीपीपी मॉडल पर कराना पड़ सकता है। शासन ने जीडीए समेत सभी प्राधिकरणों को पत्र भेज स्पष्ट कर दिया कि मेट्रो परियोजनाओं का निर्माण कार्य पीपीपी मॉडल पर कराया जाए। जिससे राज्य सरकार पर वित्तीय भार न पड़े। दिल्ली में एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन पीपीपी मॉडल का नमूना है। तेलंगाना में भी इसी तर्ज पर मेट्रो कॉरिडोर बनाए गए हैं।
जीडीए ने फेज-तीन के तहत नोएडा इलेक्ट्रॉनिक सिटी से साहिबाबाद और वैशाली से मोहननगर तक दो कॉरिडोर की डीपीआर बनवाई थी। फंड की कमी के कारण दोनों कॉरिडोर अलग-अलग चरण में बनाने का निर्णय हुआ। फेज-तीन के पहले पहले चरण में नोएडा इलेक्ट्रॉनिक सिटी से साहिबाबाद कॉरिडोर बनाने का फैसला हुआ था। इस कॉरिडोर के लिए 1886 करोड़ रुपये की लागत का आकलन किया गया था। इस पर वैभव खंड, इंदिरापुरम, शक्ति खंड, वसुंधरा सेक्टर-पांच और साहिबाबाद (वसुंधरा लाल बत्ती पार) में स्टेशन प्रस्तावित थे। बाद में जीडीए अधिकारियों की समझ में आया कि साहिबाबाद तक बनाने के बजाए मोहननगर तक कॉरिडोर को विस्तार देने पर ज्यादा फायदा होगा। इस कदम से यह कॉरिडोर मेट्रो की दिलशाद गार्डन-न्यू बस अड्डा लाइन से जुड़ जाएगा। नोएडा से सीधी कनेक्टिविटी हो जाएगी। सर्वे कर पता किया गया कि इस बदलाव से कॉरिडोर की लंबाई 5.11 किलोमीटर से बढ़ कर करीब सात किलोमीटर हो जाएगी। लागत 200 करोड़ रुपये बढ़ जाएगी। जोकि, बहुत ज्यादा नहीं होगी। सभी संभावनाओं पर गौर करने के बाद डीएमआरसी को डीपीआर में संशोधन करने के लिए कहा गया था। अभी डीपीआर संशोधित नहीं हुई है। जीडीए तैयारी में था कि इस नए कॉरिडोर के लिए राज्य सरकार से फं¨डग की व्यवस्था कराई जाए। ताकि, प्राधिकरण का आर्थिक बोझ कम किया जा सके। इससे पहले जीडीए अपना प्रस्ताव रखता शासन स्तर से आए पत्र में स्पष्ट कर दिया गया कि भविष्य की मेट्रो परियोजनाओं को पीपीपी मॉडल पर विकसित किया जाए।
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डीएमआरसी से कॉरिडोर बनवाने के नुकसान ज्यादा होते हैं। जिस कॉरिडोर को डीएमआरसी तैयार करता है, उसका संचालन भी वही करते हैं। स्टेशन परिसर पर मालिकाना हक और वाणिज्यिक अधिकारी उनके पास ही रहते हैं। ऐसे में राज्य सरकार और जीडीए को किसी तरह का आर्थिक लाभ नहीं होता।
----- शासन से एक पत्र आया है जिसमें मेट्रो परियोजना के लिए कंसल्टेंट नियुक्त करने की गाइडलाइन दी गई है। उसमें पीपीपी मॉडल पर मेट्रो परियोजना विकसित करने पर जोर दिया है।
- कंचन वर्मा, वीसी, जीडीए