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    लेखकों की नई पीढ़ी दे गए रवींद्र कालिया

    By Edited By:
    Updated: Sat, 09 Jan 2016 08:24 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, साहिबाबाद : भारतीय ज्ञानपीठ के पूर्व निदेशक और हिन्दी साहित्य के प्रख्यात लेखक र

    जागरण संवाददाता, साहिबाबाद :

    भारतीय ज्ञानपीठ के पूर्व निदेशक और हिन्दी साहित्य के प्रख्यात लेखक रवींद्र कालिया के निधन की सूचना ने शनिवार को साहित्य प्रेमियों को सन्न कर दिया। युवा लेखकों के लिए एक स्कूल की तरह मौजूद रहे रवींद्र कालिया के असमय अवसान से साहित्य जगत में खालीपन का अहसास सभी को हो रहा है। ट्रांस ¨हडन में रहने वाले साहित्य प्रेमियों ने इस मौके पर अपनी पीड़ा और हिन्दी साहित्य व पत्रकारिता में रवींद्र कालिया के अवदान का स्मरण भी किया।

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    प्रतिभाशाली कथाकार हैं उनकी खोज :

    पत्रकार व स्त्रीवादी लेखिका गीता श्री ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि रवींद्र कालिया हमारे समय के ऐसी शख्सियत थे, जो प्रतिभाओं को खोजते, मांजते, संवारते और उन्हें स्थापित कर देते थे। समकालीन दौर के कई प्रतिभाशाली कथाकार उनकी खोज हैं। वे न सिर्फ प्रतिभाओं को अच्छे तरह से पहचानते थे बल्कि उनके साथ खड़े भी होते थे। कथा जगत ने राजेंद्र यादव के बाद दूसरा बड़ा हितैषी खो दिया। यादव जी के बरक्स कालिया जी भी कथा पीढ़ी तैयार कर रहे थे। उनका बहुत बड़ा दिल था। नए से नए कथाकार को भी बहुत प्रोत्साहित करते और सराहते थे। निजी ¨जदगी में वे बहुत हंसमुख और ¨जदादिल इनसान थे। जितने बड़े कथाकार, उतने ही बड़े इनसान!

    उन्हें भूल पाना संभव नहीं है। हम सबने जैसे अपना अभिभावक खो दिया। युवा पीढ़ी के लिए उनका दिल और घर दोनों खुला था।

    जीवंत कोना सूना हो गया :

    पत्रकार और लेखक अनंत विजय ¨सह ने कहा कि रवीन्द्र कालिया के निधन से ¨हदी साहित्य का एक जीवंत कोना सूना हो गया है । कालिया जी ¨हदी के उन विरले रचनाकारों में से थे जिन्होंने अपनी लेखनी से साहित्य की जीवंतता को बनाए रखा । रवीन्द्र कालिया, दूधनाथ ¨सह, ज्ञानरंजन और काशीनाथ ¨सह की चौकड़ी ने ¨हदी कहानी को अपनी रचनाओं से एक नई ऊंचाई दी थी। मेरा कालिया जी से पत्र संपर्क तो करीब पैंतीस सालों से था लेकिन मिलना तब हुआ जब वो नया ज्ञानोदय के संपादक होकर दिल्ली आए थे। हमारी पूरी पीढ़ी उनके लेखन की दीवानी है। कालिया जी में युवा पीढ़ी को आगे बढ़ाने का दुर्लभ गुण था। नया ज्ञानोदय का संपादक रहते हुए उन्होंने युवा लेखकों की एक पूरी पीढ़ी तैयार कर दी और माना जाता है कि भैरव प्रसाद गुप्त और राजेन्द्र यादव के बाद कालिया जी युवा लेखकों की एक पीढ़ी को संस्कारित किया। वे साहित्यकार के अलावा पत्रकार भी थे और रविवार के लिए लंबे समय तक उन्होंने लेखन भी किया था। कुछ समय के लिए उन्होंने राजनीति भी की थी, लेकिन उनका मन अंतत: साहित्य में ही रमता था। कालिया जी को नमन है।

    हस्ताक्षर रह गया :

    कहानीकार रश्मि भारद्वाज ने कहा कि रवींद्र कालिया से मिलने पर ऐसा लगता था। मानो एक उत्साही, कौतूहल से भरा बच्चा परियों, सितारों के देश में चला आया हो। रवीन्द्र कालिया और ममता जी से मिलकर भी कुछ ऐसा ही लगा था। उनके आवास पर आयोजित एक अनौपचारिक गोष्ठी में उन्हें और ममता जी को सुन पाना जीवन का एक अविस्मरणीय अनुभव बन गया। पहली बार मिलने पर भी जब कालिया जी ने मुझे पहचान लिया तो सुखद आश्चर्य भी हुआ। सभी युवाओं की रचनाएं। उन्होंने जितने मन से सुनी और टिप्पणी की, वह उनके विशाल हृदय की झलक दे रही थी। सोचा था फिर दुबारा मिलूंगी कभी उन्हें, अपनी लिखी किसी कहानी के साथ। कथा का नया अंक था मेरे पास। उनकी ही एक कहानी पर उनके हस्ताक्षर ले लिए थे। हस्ताक्षर रह गया है, वह नहीं रहे। यह अपूर्णीय क्षति है हम सब के लिए। विनम्र श्रद्धांजलि।

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