न हुआ सीता हरण, न जलेगा रावण
इस दशहरे पर पहली बार नहीं होता पुतला दहन कोरोना ने मेलों से मिलने वाले रोजगार लगाया ग्रहण
फीरोजाबाद, जासं: ऐसा पहली बार होगा जब रामलीला स्थलों के साथ ही गली मुहल्लों में बुराईयों के प्रतीक रावण का पुतला दहन नहीं होगा। इस बार न सीता का हरण हुआ और न रावण जलेगा। कोरोना ने इस मौके पर लगने वाले मेले और आतिशबाजी पर ग्रहण लगा दिया है।
शहर में रामलीला का इतिहास सवा सौ साल से भी पुराना है। हर साल होने वाले आयोजन के चलते कोटला रोड के पास स्थित मैदान का नाम ही रामलीला मैदान हो गया है। रामलीला के साथ ही नवरात्र मेला लगने के कारण सुबह चार बजे से रात 12 बजे तक हजारों की भीड़ जुटी रहती थी। खेल, तमाशे, झूले, घर गृहस्थी के सामान, चाट, पकोड़े वालों की अच्छी आमदनी होती थी।
रामलीला कमेटियों में हर साल विवाद भी होता था, लेकिन इस साल डेढ़ दशक से रामलीला कराती आ रही कमेटी का पंजीकरण निरस्त होने के साथ ही प्रशासन ने अयोध्या जी पर अपना ताला डाल दिया। प्रशासन ने शुरूआत में कोरोना की गाइडलाइन का पालन कराते हुए रामलीला कराने की बात कही, लेकिन बाद में आयोजन का विचार छोड़ दिया। लेबर कालोनी में 40 साल पुरानी रामलीला भी इस साल नहीं हुई।
दोनों जगह रामलीला एक दूसरे से एक दो दिन के आगे पीछे लीलाओं का मंचन होता है, लेकिन रावण का पुतला दहन दशहरे पर ही किया जाता है। शहर की रामलीला में शाम सात बजे और लेबर कालोनी में रात 11 बजे के बाद रावण का वध होता था, लेकिन इस बार लीलाएं न होने से ये परंपरा भी नहीं निभाई जाएगी। इससे पुतला बनाने वाले और आतिशबाजों को भी रोजगार नहीं मिल सका। कई दिन पहले से होती थी तैयारी: रामलीलाओं में रावण का पुतला बनाने और आतिशबाजी करने वाले गांव गिधौरा निवास कमलेश कुमार ने बताया कि आर्डर मिलने पर रावण के पुतले कई दिन पहले से बनाना शुरू करते थे। उनमें तरीके से आतिशबाजी भी फिट की जाती थी, लेकिन इस बार कहीं से कोई आर्डर नहीं आया। आतिशबाजी भी नहीं बिकी।