धैर्य और भलाई की सीख देता है रमजान
हदीस में आता है कि रमजान मुहम्मद साहब इतने ददानी होते थे कि जैसे चलती हुई हवा होती है। जो हर इंसान को लाभ देती है।
रमजान मुबारक को नबी ने सहानुभूति का महीना कहा है। अपने आसपास और मिलने जुलने वाले लोगों के साथ हमदर्दी और भलाई का व्यवहार इसका मूल गुण है। रोजा में दूसरों की भूख-प्यास को महसूस करना और उनकी सहायता करने से अल्लाह प्रसन्न होता है। इसे धैर्य का महीना भी कहा गया है। मोहम्मद साहब ने फरमाया कि रोजेदार को चाहिए कि अश्लील बात न करे। मजाक, झूठ, चीखने चिल्लाने और शोर मचाने जैसे काम न करे। अगर कोई लड़े या उसे गाली दे तो उसे चाहिए कि दो बार कह दे कि मैं रोजेदार हूं। रमजान का महीना अपने अंदर धैर्य और सहनशीलता का गुण पैदा करने का सबसे अच्छा अवसर है। हम अपनी सारी बुरी आदतों-कर्मों से छुटकारा प्राप्त करके एक अच्छा इंसान बन सकते हैं। इस बार इबादत के महीने में ही इबादतों के स्थान मजबूरी में बंद करने पड़े हैं। यह भी मुसलमान के लिए धैर्य की परीक्षा है जो रोजा हमें सिखाता है। वैसे भी इस्लाम में इबादत, प्रदर्शनी या प्रदर्शन नहीं है। विशेषकर रमजान में अलग होकर इबादत को पसंद किया गया है। इसलिए घर पर रहकर इबादत का भी उतना ही सवाब मिलेगा।
-मुफ्ती रजी उद्दीन, अध्यक्ष ईदगाह कमेटी, फीरोजाबाद