कागजों में दौड़ी विकास एक्सप्रेस, दूर नहीं हो सकी बदहाली
करकौली से पुरा दिलीप तक - चार गांव में पानी ऊबड़-खाबड़ गलियां गंदगी से नहीं मिली निजात विकास कराने वाले उम्मीदवार को मतदान करने की बना रहे रणनीति।
संवाद सहयोगी, फीरोजाबाद: जिला मुख्यालय से दस किमी दूर सदर तहसील के गांव करकौली को छह साल पहले लोहिया गांव घोषित किया गया था। यहां कागजों में खूब विकास हुआ, लेकिन धरातल में लोग बदहाली से जूझ रहे हैं। पंचायत चुनाव में दैनिक जागरण की इलेक्शन एक्सप्रेस को करकौली से लेकर पुरा दिलीप तक कुछ ऐसी ही तस्वीर नजर आई।
सुबह दस बजे पहला पड़ाव करकौली था। यहां गली में बैठे बुजुर्ग और युवा पंचायत चुनाव को लेकर चर्चा कर रहे थे। जागरण संवाददाता ने बाइक रोकी और गांव में हुए विकास पर चर्चा शुरू की तो 65 वर्षीय अतर सिंह तमतमा कर बोले कि विकास तो केवल कागजों में हुआ है। गांव में दो तालाब हैं। एक समतल हो गया तो दूसरा बरसात में विकराल रूप धारण कर लेता है। आसपास बसी वाल्मीकि बस्ती के लोगों का घर से निकलना दुश्वार हो जाता है। सब हैंडपंप खराब पड़े हैं, ऊबड़-खाबड़ गलियां बदहाली की दास्तां बयां करती है। दो साल पूर्व तत्कालीन सीडीओ नेहा जैन ने भी निरीक्षण किया था, लेकिन आज तक बदहाली दूर नहीं हो सकी।
उनकी बात का समर्थन करते हुए 60 वर्षीय रामबाबू बोले कि भईया अब ऐसे ही रहने दो। 6500 आबादी वाली ग्राम पंचायत में 2500 वोटर है। सरकार ने तो विकास के लिए खूब पैसा दिया, लेकिन धरातल में कुछ कार्य नहीं हो सका। इसके बाद बाइक वाल्मीकि बस्ती की ओर आगे बड़ी तो गली में खड़े 67 वर्षीय अमर सिंह ने रोक लिया। कहने लगे कि अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधि तक दौड़ लगाई, लेकिन कोरे आश्वासन के अलावा कुछ नहीं हो सका। सुल्तान सिंह, दीपेंद्र सिंह, मुकेश, राजपाल सिंह, उदयभान, देवेश , सतीश भी उनकी बात का सहमत कर रहे थे।
इसके बाद इलेक्शन एक्सप्रेस गांव नूरपुर पहुंची। गली में चारपाई पर बैठे लोगों से चर्चा शुरू की तो 50 वर्षीय राधेश्याम बोले कि विकास के नाम पर तो भईया हर कोई छलावा करता आ रहा है। सरकार पैसा देती है, लेकिन वो कहां चला जाता है, पता ही नहीं चलता। भगवानदास शर्मा ने बताया कि 15 साल पहले गांव में खड़ंजा बनवाए गए थे, उसके बाद मरम्मत कराने की सुध भी किसी ने नहीं ली है। ऊबड़-खाबड़ गलियों में पानी की निकासी नहीं होने के कारण जल भराव रहता है। सफाई के नाम पर गंदगी के ढेर लगे रहते हैं। कुछ ऐसे ही हाल मिश्री का पुरा और दिलीप का पुरा में मिला। ग्रामीणों का कहना था कि अबकी बार वोट उसे देंगे, जो बिना भेदभाव के विकास कार्य कराएगा।