कागजों में पूरे हैं इंतजाम फिर भी ट्रैफिक बेलगाम
टूंडला से शिकोहाबाद तक 17 चौराहों पर तैनात रहती है ट्रैफिक पुलिस जुर्माने के बावजूद शहर में बढ़ रहा यातायात नियमों का उल्लंघन का ग्राफ।
जासं,फीरोजाबाद: आगरा-कानपुर हाईवे पर बसा फीरोजाबाद साल दर साल प्रगति करता गया। वाहनों की संख्या लगातार बढ़ती गई। छह साल पहले नगर निगम का दर्जा मिलने के बाद शहर महानगर बन गया। नियतन के मुताबिक, ट्रैफिक पुलिस में फोर्स पर्याप्त होने के बावजूद ट्रैफिक बेलगाम है।
चूड़ी और कांच कारखानों के नाम से मशहूर फीरोजाबाद के बीचोंबीच हाईवे के दोनों तरफ शहर बसा है। जिले में टूंडला से लेकर शिकोहाबाद तक 17 चौराहों पर सुबह सात बजे से रात नौ बजे तक ट्रैफिक पुलिस तैनात रहती है। शहर में राजा का ताल स्थित सिक्सलेन बाइपास से लेकर जिला मुख्यालय तक नौ जगह ट्रैफिक पुलिस लगती है। इनमें सबसे व्यस्त सुभाष तिराहा, नगला बरी, जाटवपुरी पर रसूलपुर पर सबसे ज्यादा वाहनों का लोड रहता है। बाइपास के पास आसफाबाद पर वाहनों की रेलमपेल रहती है। सभी चौराहों पर ट्रैफिक के नियमों की धज्जियां पूरे दिन उड़ती रहती हैं। ट्रिपल राइडिग और बिना हेलमेट दोपहिया वाहन दौड़ाने वाले यहीं से गुजरते हैं। प्रतिबंधित मार्ग पर भी दौड़ते हैं ई-रिक्शा: शहर के बीचोंबीच गांधी पार्क से सेंट्रल चौराहा होते हुए नालबंद की तरफ ई-रिक्शा पर प्रतिबंध है, मगर यहां पूरे दिन ई-रिक्शा दौड़ते रहते हैं। इस कारण शहर के इस प्रमुख मार्ग पर ठीक तरह पैदल निकलना भी मुश्किल रहता है। थर्मल प्रिटर की दरकार: ट्रैफिक पुलिस में नियतन से फोर्स तो अधिक है, लेकिन कांस्टेबिल और हेड कांस्टेबिल की भरपाई होमगार्ड से हो रही है। वाहनों का चालान करने के लिए ट्रैफिक पुलिस को थर्मल प्रिटर की दरकार है। इसके अभाव में यातायात पुलिस अपने मोबाइल फोन में एप डाउनलोड कर वाहनों का ई-चालान करने को विवश है।
--- यातायात पुलिस में नियतन व उपलब्ध मैनपावर-
पद---------नियतन-- उपलब्धता
टीआइ--------एक-----खाली
टीएसआइ-----तीन -----तीन
हेड कांस्टेबिल--18------पांच
कांस्टेबिल ---- 54---- 36
होमगार्ड------00-----54
कुल ------- 76-----102
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एआरटीओ प्रवर्तन का पद खाली: एआरटीओ प्रवर्तन का पद एक साल से खाली है। इस पद का मुख्य कार्य यातायात के नियमों का पालन कराना है। एआरटीओ पीके सिंह ने बताया कि अधिकारी की कमी के चलते चेकिग और कार्रवाई में परेशानी होती है। इस संबंध में मुख्यालय को पत्र भेजा गया है। ड्राइविग लाइसेंस:
आनलाइन सिस्टम बना परेशानी का सबब:
ड्राइविग लाइसेंस के आवेदकों को टेस्ट के लिए स्लाट बुकिग में लंबा इंतजार करना पड़ता है। लाइसेंस की डिलीवरी लखनऊ से सीधे आवेदक के पते पर होती है, जो तय समय में आवेदक के पास तक नहीं पहुंचते। आनलाइन आवेदन करने वाले कंप्यूटर के संचालक दो से तीन हजार रुपये में ठेका देकर लाइसेंस बनवाते हैं। वर्जन-
मैनपावर व संसाधनों की कमी विभाग के पास नहीं है। चौराहों पर खराब सिग्नलों को ठीक कराने का प्रयास किया जा रहा है। विकास प्राधिकरण को लिखा गया है। सिग्नल ठीक होने पर यातायात समस्या को दुरुस्त बनाने में मदद मिलेगी।
हीरा लाल कन्नौजिया, सीओ ट्रैफिक