राजकीय व सवित्त विद्यालयों में शिक्षकों का टोटा
जागरण संवाददाता फतेहपुर राजकीय और सवित्त विद्यालयों में व्याप्त शिक्षकों का टोटा खत्म होन
जागरण संवाददाता, फतेहपुर : राजकीय और सवित्त विद्यालयों में व्याप्त शिक्षकों का टोटा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। शिक्षकों की कमी के चलते पठन पाठन पर बुरा असर पड़ रहा है। हर साल सेवानिवृत्त हो रहे शिक्षकों के चलते रिक्त पदों की संख्या बढ़ती जा रही है। शिक्षकों की कमी के कारण इन विद्यालयों से अभिभावकों का मोह भंग होता जा रहा है। यही वजह है कि इन विद्यालयों की छात्र संख्या में दिन प्रतिदिन गिरावट दर्ज की जा रही है। बीते शिक्षासत्र में 28 शिक्षक-शिक्षिकाएं फिर से सेवानिवृत्त हो गए हैं।
जिले में 72 सवित्त व 40 राजकीय स्कूल संचालित हो रहे हैं। इनमें सृजित पदों के सापेक्ष आधे से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। शिक्षकों की कमी के चलते छात्र संख्या में भी गिरावट दर्ज हो रही है। विशेषज्ञ टीचरों की कमी के चलते पठन पाठन पर बुरा असर पर पड़ता है। काम चलाऊ नीति के तहत प्राइवेट शिक्षक भी रखे जाते हैं। इनसे शासन की बेहतर पठन पाठन की मंशा पूरी नहीं हो पाती है। सवित्त विद्यालयों में 272 प्रवक्ताओं के पद सृजित हैं जिसमें केवल 130 पद भरे हुए हैं। इसी तरह सहायक अध्यापक के 975 प्रवक्ताओं के सृजित पदों के सापेक्ष 486 पर ही भरे हुए हैं। 40 राजकीय विद्यालयों में प्रवक्ताओं के 125 पद सृजित हैं जिसमें केवल 45 की तैनाती है, 256 सहायक अध्यापकों में केवल 179 की नियुक्ति है। अभिभावकों को मोह भंग हो रहा
शिक्षा जगत में राजकीय और सवित्त विद्यालय नामचीन रहे हैं। मौजूदा समय में व्याप्त समस्याओं के चलते लोगों का मोहभंग हो रहा है। राजकीय इंटर कॉलेज में 90 के दशक तक प्रवेश के लिए खासा जोड़तोड़ और परीक्षा से गुजरना पड़ता था। तब इन विद्यालयों में पढ़ने वालों की संख्या 2,000 के पास पहुंचती थी। जबकि मौजूदा समय में यह संख्या 700 पहुंचाना भी मुश्किल हो रहा है। प्राइवेट रखे जाते शिक्षक
विद्यालयों में रिक्त पदों से आ रही दिक्कत के चलते स्कूलों में गठित शिक्षक-अभिभावक संघ से प्राइवेट शिक्षक रखे जाते हैं। 5,000 रुपये के मानदेय के आसपास मेहनताना दिया जाता है। अभिभावक इस व्यवस्था से खुश नहीं है। आरोप है कि इन शिक्षकों में योग्यता का अभाव रहता है। एक लाख पगार वाले योग्य शिक्षकों के आगे इन प्राइवेट शिक्षकों को ज्ञान नहीं होता है। सेवानिवृत्त शिक्षक भी रखे गए नहीं मिला लाभ
बीते शिक्षा सत्र में शासन की मंशा पर विद्यालयों में 70 साल से कम उम्र के शिक्षकों को मानदेय के आधार पर रखा गया था। इससे लाभ नहीं मिल पाया है। 15 से 20 हजार के मानदेय पर शिक्षकों को रखा तो गया लेकिन पठन पाठन पटरी पर नहीं आ पाया है। जानकार बताते हैं कि इन शिक्षकों ने पढ़ाने में रुचि नहीं ली है। इसके साथ ही जानकार बताते हैं कि प्रधानाचार्य अपने से अधिक उम्र के इन रिटायर शिक्षकों से संकोचवश काम नहीं ले पाए हैं।
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क्या बोले जिम्मेदार
-राजकीय और सवित्त विद्यालयों में शिक्षकों की कमी किसी से छिपी नहीं है। असल में नियुक्त का मामला शासन स्तर का है। सृजित पदों के सापेक्ष आधे पद भी भरे नहीं हैं। सत्र की शुरुआत से पूर्व शासन को हर विद्यालय का अधियाचन भेजा जाता है। इस बार भी अधियाचन भेजा गया है। शिक्षकों की कमी के लिए शिक्षक अभिभावक संघ की मदद ली जाती है। महेंद्र प्रताप सिंह, जिला विद्यालय निरीक्षक