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प्राकृतिक खेती गंगा गांवों की बनेगी पहचान

27 जनवरी से शुरू हो रही गंगा यात्रा के पहले विभाग 43 गंगा गांवों की कार्ययोजना तैयार करने में जुटा हुआ है। विकास खंड मलवां भिटौरा हथगाम व देवमई के गंगा पट्टी के गांवों प्राकृतिक खेती से जोड़ने का मकसद है कि खेती में प्रयोग होने वाले रासायनिक उर्वरक कीटनाशक दवाओं के प्रदूषण से पतितपावनी गंगा को बचाया जा सके। जीरो बजट की खेती विकसित होने से किसानों की खेती में लागत कम होगी और दूनी आय का रास्ता बनेगा। इसी के साथ प्राकृतिक खेती से गाोवंश का संबर्धन होगा। तीन चरणों की इस योजना के पहले चरण में हर गांव के एक-एक किसानों को जीरो बजट की खेती का प्रशिक्षण दिया जाना है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 18 Jan 2020 11:50 PM (IST)Updated: Sun, 19 Jan 2020 06:03 AM (IST)
प्राकृतिक खेती गंगा गांवों की बनेगी पहचान
प्राकृतिक खेती गंगा गांवों की बनेगी पहचान

जागरण संवाददाता, फतेहपुर : गंगा यात्रा के साथ ही गंगा गांव के किसानों को जीरो बजट की खेती से दक्ष करने की कार्ययोजना तैयार की गई है। गोवंश की उपयोगिता बढ़ाने के लिए गाय के गोबर व मूत्र से तैयार जीवामृत जीरो बजट की खेती का मुख्य आधार बनेगा। पहले चरण में गंगा गांवों के 43 किसानों को प्रशिक्षण के लिए चुना गया है। 22 जनवरी को सीएसए कृषि विश्वविद्यालय कानपुर में इन किसानों को जीरो बजट की खेती के गुर सिखाएं जाएंगे। दूसरे चरण में कलस्टर बनाकर जैविक खेती के लिए करने वाले किसानों को बीज, मेडबंदी के लिए धनराशि मुहैया कराई जाएगी।

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27 जनवरी से शुरू हो रही गंगा यात्रा के पहले विभाग 43 गंगा गांवों की कार्ययोजना तैयार करने में जुटा हुआ है। विकास खंड मलवां, भिटौरा, हथगाम व देवमई के गंगा पट्टी के गांवों प्राकृतिक खेती से जोड़ने का मकसद है कि खेती में प्रयोग होने वाले रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक दवाओं के प्रदूषण से पतितपावनी गंगा को बचाया जा सके। जीरो बजट की खेती विकसित होने से किसानों की खेती में लागत कम होगी और दुगनी आय का रास्ता बनेगा। इसी के साथ प्राकृतिक खेती से गोवंश का संवर्धन होगा। तीन चरणों की इस योजना के पहले चरण में हर गांव के एक-एक किसानों को जीरो बजट की खेती का प्रशिक्षण दिया जाना है। कृषि विभाग ने तैयार कार्ययोजना में हर गांव में कलस्टर तय कर किसानों को जैविक खेती से जोड़ा जाना है। क्या है जीरो बजट खेती

- जीरो बजट, प्राकृतिक खेती खेती की ऐसी विधा है जिसमें रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल नहीं किया जाता। देशी गाय के गोबर व मूत्र से तैयार जीवामृत का उपयोग खाद व दवा के रूप में किया जाता है। प्राकृतिक खेती से भूमि की उर्वराशक्ति कमजोर नहीं होती और पर्यावरण बेहतर होता है। विशेषज्ञों के अनुसार एक देशी गाय के गोबर व मूत्र से तीस एकड़ जमीन के लिए जीवामृत तैयार किया जा सकता है। कार्ययोजना तैयार

- उपकृषिनिदेशक एके पाठक ने बताया कि गंगा किनारे के गांवों की कार्ययोजना तैयार कर प्राकृतिक खेती की जागरूकता के कार्यक्रम शुरू कर दिए गए है। चयनित किसानों को जीवामृत बनाने के लिए सामाग्री खरीद के लिए पैसा दिया जाएगा साथ ही प्रशिक्षण देकर दक्ष किया जाएगा। जीरो बजट की खेती के लिए किसानों का पहला प्रशिक्षण 22 जनवरी को चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय कानपुर में दिया जाएगा।


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