अस्पताल 'बीमार', सुविधाएं बदहाल, मरीज हो रहे परेशान
केस एक- यमुना में तटवर्ती गांव रामनगर कौहन में रहने वाली राजरानी के शरीर में दाने हो गए
केस एक-
यमुना में तटवर्ती गांव रामनगर कौहन में रहने वाली राजरानी के शरीर में दाने हो गए हैं। कमर से पैर तक बार-बार दर्द उठता है। डॉक्टर से परामर्श लेने के लिए जब वे सरकंडी पीएचसी पहुंची तो वहां कोई डॉक्टर ही नहीं मिला। चार बार चक्कर लगाए, इलाज न मिलने पर अब कानपुर जाने की तैयारी कर रही हैं। केस दो...
रमसोलेपुर की कमला देवी कई बार सरकंडी, असोथर और सराय खालिस के सरकारी अस्पताल के चक्कर लगा चुकी हैं। आंख और पेट की समस्या ठीक नहंी हुई। हो भी कैसे डॉक्टर मिलते नहीं, फार्मासिस्ट इलाज करते हैं। इनकी बेटी को भी शरीर में दाने निकलने की शिकायत है। इस पर कह दिया जाता है कि जिला अस्पताल में जाकर दिखाओ। जागरण संवाददाता, फतेहपुर : ये दो केस ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी अस्पतालों के 'बीमार' होने की बानगी भर है। असल में तो जिले भर में स्वास्थ्य सुविधाएं बदहाल हो चुकी हैं। जरूरत के सापेक्ष सिर्फ आधे डॉक्टरों से काम चलाया जा रहा है। विशेषज्ञों की कमी होने की वजह से कई बार तो लोगों को इलाज ही नहीं मिल पाता और शहर से बाहर जाकर दिखाना पड़ता है। कई जगह डॉक्टरों की जगह फार्मासिस्ट ही मरीजों का इलाज करते हैं।
प्रदेश सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी उसके प्रयास को निष्फल साबित करने में जुटे हैं। यही कारण है कि ऑपरेशन, एक्सरे, मेडिकोलीगल समेत तमाम स्वास्थ्य सुविधाएं निश्शुल्क होने के बावजूद मरीज कभी इनका लाभ नहीं उठा पाते। कहीं डॉक्टर हैं तो उपकरण नहीं हैं और कहीं उपकरण धूल खा रहे हैं लेकिन डॉक्टर ही गायब हैं। ऐसे में सीएचसी और पीएचसी मात्र रेफरल सेंटर बनकर रह गए हैं। यहां सैकड़ों मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं लेकिन डॉक्टरों की खाली कुर्सियां देखकर निराश लौटना पड़ता है।
फोड़ा-फुंसी तक के ऑपरेशन नहीं
जिले में 11 सामुदायिक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र चल रहे हैं। मेजर और माइनर ओटी की भी सुविधा है। हैरानी की बात ये है कि यहां आज तक फोड़ा-फुंसी तक का ऑपरेशन नहीं होता। इसके अलावा जिले में 10 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। यहां मरीज तो आते हैं लेकिन डॉक्टर कभी-कभार ही दिखते हैं। चिकित्सकों के 154 पद, काम करते हैं सिर्फ 100
जिले में चिकित्सकों के 154 पद स्वीकृत हैं। इनमें से काम तकरीबन 100 ही करते हैं। बाकी डॉक्टरों में कुछ निलंबन झेल रहे हैं तो कुछ बिना सूचना के गायब रहते हैं। कुछ पीडी की पढ़ाई करने गए तो कुछ मेडिकल अवकाश पर चल रहे हैं। जिले में कम से कम 200 डॉक्टरों की आवश्यकता है। 151 चिकित्सक तैनात तो हैं लेकिन काम सिर्फ 100 ही करते हैं। गायब चिकित्सकों को समय-समय पर नोटिस दिया जाता है, लेकिन हालात में सुधार नहीं हो रहा है।
- डा. उमाकांत पांडेय, सीएमओ