इन शिक्षकों ने जीवंत की गुरू परंपरा
गुरू कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढि़ गढि़ मारै चोट.. यह शब्द अपने आपमें सब कुछ कह देते हैं
गुरू कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढि़ गढि़ मारै चोट.. यह शब्द अपने आपमें सब कुछ कह देते हैं। आज भी जब कोई व्यक्ति अपने प्राइमरी के अध्यापक को देखता है तो उसका सम्मान करने के लिए नतमस्तक हो उठता है। भले ही नए जमाने की बयार में गुरू शिष्य परंपरा की वह बानगी न दिखाई देती है, जो पिछली पीढ़ी ने देखी समझी और जानी है, लेकिन आज भी नई पीढ़ी अपने गुरूओं का आदर करने से पीछे नहीं रहती। लगातार परिवर्तित हो रहे सामाजिक ताने बाने ने गुरूओं के प्रति सम्मान का भाव भले ही थोड़ा कम किया हो, पर आज भी उनकी शिक्षाएं पूरी तरह से प्रासंगिक हैं। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित गुरुओं के संस्मरण हमारी वह थाती हैं जो बताती हैं कि आखिर उन्होंने अपना सर्वस्व कैसे शिष्यों को सौंप दिया।
वह नरकुल की कलम और स्याही से भरी दवात..
-वर्ष 2001 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित होने वाली इस शख्सियत का कहना है जब उनके पिता कृष्णपाल ¨सह को राष्ट्रपति पुरस्कार मिला तो उनके उत्साही साथियों ने पूछा कि बेटा तुम क्या बनोगे तो मेरा उत्तर था शिक्षक। पिता के नक्शे कदम पर चलकर यह पदक पाऊंगा। प्राथमिक शिक्षा की याद करते हुए बताते हैं कि पिता प्रतिदिन शिष्यों की नरकुल नेजा द्वारा बनाई जाने वाली कलम का खत और दवात में भरी स्याही जांचते थे। कलम का खत लेख को सुन्दर बनाता है। खराब होने पर वह खुद छीलते और खत काट देते थे। फिर कौन बच्चा नहीं आया उसको खुद बुलाने घर पहुंच जाते थे। - कलवंत ¨सह
जहां तैनाती, वहीं बनाया आशियाना
बेसिक शिक्षा में नौकरी करने के बाद कई जगह स्थानांतरण भी हुए लेकिन गुरुओं से मिली शिक्षा ने उसी गांव में डेरा डालने की नसीहत को नहीं छोड़ पाया। सुबह पहर चार बजे हाथ में टार्च लेकर लेकर गीत गुनगुनाते हुए शिष्यों को जगाने का भाव रखकर गांव का भ्रमण करता था। इसका प्रतिफल यह होता था कि बच्चे के परिजन बच्चे को उठा देते थे कि गुरुजी की प्रभात फेरी हो गई, उठो पढ़ो। तैनाती वाले गांवों में मिले प्यार को वह भुला नहीं पाएंगे। आज भी शिष्य नहीं उनके परिजन श्रद्धाभाव से नमन करते हैं तो सीना गर्व से तन जाता है। शिक्षा और शिक्षा के मंदिरों को विवादों से दूर रखा जाना चाहिए। पं. केदारनाथ दुबे
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संस्कारवान विद्यार्थी की पौध करें तैयार
- हम यह नहीं कहते हैं कि शिक्षकों में समर्पण की कमी है लेकिन इस ओर ऐसे प्रयास किए जाएं जिसका सफल परिणाम भी देखने को मिले। नैतिकता के ह्रास के चलते शिक्षा का पतन हुआ है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। शिक्षकों के ऊपर बढ़ रहे दबाव के चलते सुग्राही शिक्षा के विकल्प अपनाए जाने चाहिए। बिगड़े हुए समाज में समर्पण की भावना से यह प्रयास सार्थक बनाया जा सकता है। बच्चों को पठन पाठन से जोड़कर उन्हें अच्छा नागरिक बनाने में जहां शिक्षक की भूमिका होती हैं वहीं इस प्रयास में अभिभावक के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। रज्जन अवस्थी नौनिहालों को संवारने काम शिक्षक का मुख्य दायित्व
- कल जैसा आज नहीं इसलिए अब शिक्षकों को बहुत ही सधे कदमों से दायित्व निर्वहन करना चाहिए। इससे शिक्षकों का मान बढ़ेगा तो समाजिक जिम्मेदारी आसानी से निभाई जा सकती है। विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे को पीटने से मनाही है तो इसके लिए हमें अभिभावकों के संपर्क में रहना चाहिए जिससे कि बच्चे की कमी उजागर हो सके साथ में दायित्व निर्वहन का प्रतिफल भी अच्छा मिलेगा। बीते समाने की गुरु-शिष्य की डोर कमजोर हुई है इसको मजबूत करने के लिए हर शिक्षक को महती भूमिका अदा करनी होगी। सफल शिक्षक वही है जो बाधाओं को पार करके सफल दायित्व निर्वहन कर सके। विजय ¨सह
समाज को दिशा देना शिक्षक का मूल दायित्व
- समाज खराब हो गया है, समाज साथ नहीं दे रहा है यह तर्क देकर एक शिक्षक अपने दायित्व निर्वहन से बिमुख नहीं हो सकता है। इसलिए एक शिक्षक की भूमिका यह होती है कि वह अपने दायित्व निर्वहन में समाज को स्वच्छ और साफ सुथरी दिशा दे। बेटी पढ़ाओ का नारा बेहद अच्छा है लेकिन बेटा भी पढ़ाया जाएगा तभी बात बनेगी। बिगड़े समाज के स्वरूप को आज के नौनिहाल-कल के कर्णधार बच्चे बदल सकेंगे। गुरुओं का सम्मान स्वयमेव बढ़ जाएगा और समाज में नैतिकता का पतन के रास्ते में जाने से रोका जा सकेगा। शिक्षक दिवस के पावन पर्व पर हर शिक्षक को ऐसे सुधारात्मक पहल की शपथ लेनी चाहिए। लाखन ¨सह