Move to Jagran APP

सपने में गोस्वामी से मिलने आए 'महाबली'

जागरण संवाददाता, फतेहपुर : देश के प्रख्यात नाटककार व जामियां इस्लामिया विश्वविद्यालय नई दिल्ली

By JagranEdited By: Published: Sun, 09 Dec 2018 11:48 PM (IST)Updated: Sun, 09 Dec 2018 11:48 PM (IST)
सपने में गोस्वामी से मिलने आए 'महाबली'
सपने में गोस्वामी से मिलने आए 'महाबली'

जागरण संवाददाता, फतेहपुर : देश के प्रख्यात नाटककार व जामियां इस्लामिया विश्वविद्यालय नई दिल्ली के ¨हदी विभाध्यक्ष रहे असगर वजाहत के दसवें नाटक 'महाबली' का गवाह गंगा तीरे स्थिति ओमघाट बना। सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में मानस की गूंजती चौपाइयों की स्वरलहरी के बीच नाटक के सभी ग्यारह ²श्यों को जिस समय पढ़कर सुनाया गया लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच नाटक में दर्शाए गए महाबली के रूप में सम्राट अकबर व महाकवि संत तुलसीदास की बनारस के घाट में सपने में हुई मुलाकात व बातचीत को स्वीकारोत्ति दी।

loksabha election banner

नाटक के पहले ²श्य में यह दिखाया गया कि गोस्वामी तुलसीदास ने उस समय के महाबली सम्राट अकबर के दरबार में जाना स्वीकार नहीं किया। भगवान राम को आराध्य मानकर उन्होंने रामचरित मानस की रचना की उस समय संतों सहित तमाम लोगों ने तुलसीदास की नई रचना का विरोध किया। लोक कल्याण के लिए लिए उन्होंने लोकभाषा का चयन किया तो समाज में यह विरोध हुआ कि महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत में ग्रंथ की रचना की है तो इसका क्या औचित्य। महाबली के दरबारी कवि अब्दुल रहीम खानखाना व टोडरमल गोस्वामी दास के साथी थे लेकिन इसके बाद भी उन्होंने राजसत्ता के सुख को नकार दिया।

महाबली तुम इतिहास में मैं वर्तमान में रहूंगा

रात का समय है, तुलसीदास दो शिष्यों के साथ बनारस के गंगा घाट में सीढि़यों में सो रहे थे। चारो तरफ सन्नाटा है, तेज हवा चलने से पेड़ के पत्तो का शोर सुनाई देता है। तभी डुगडुगी की आवाज के बाद सुनाई पड़ता है कि बाअदब, बामोलाहेजा होशयार जिल्ले सुब्बानी सिकन्दरे सानी शांहशाहे ¨हदोस्तान महाबली जलालउद्दीन मो. अकबर तशरीफ लाते है। आवाज सुनकर तुलसीदास उठकर बैठ जाते हैं। सीढि़यों से उतर कर नीचे आते हैं तो सम्राट अकबर दिखाई पड़ते हैं। दोनों एक-दूसरे को देखते है फिर तुलसीदास पूछते है आप महाबली यहां, वह कहतें हैं हां गोस्वामी मै यहां । फिर दोनों के बीच वार्तालाप शुरू होती है। तुलसी दास की भगवान श्री राम के प्रति निष्ठा व भक्ति से प्रभावित होकर अकबर कहते है आप इतिहास में महाबली हो जाएंगे तो तुलसीदास कहते है कि हम इतिहास मे नहीं रहेंगे, मै वर्तमान में रहूंगा। परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई के साथ नाटक समाप्त हो जाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.