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साल दर साल की बाढ़ से वीरान हो गया तीसराम की मड़ैया

संवाद सहयोगी अमृतपुर यह है तीसराम की मड़ैया गांव। हालांकि अब इसे गांव कहना अतिशयोक्ति होगा। अब गांव के नाम पर यहां बस चंद झोपड़ियां ही बची हैं। यहां के बाशिदे साल दर साल बाढ़ की तबाही और प्रशासन की बेरुखी से लाचार होकर आखिर गांव छोड़ कर चले गए।

By JagranEdited By: Published: Wed, 18 Sep 2019 10:37 PM (IST)Updated: Thu, 19 Sep 2019 06:24 AM (IST)
साल दर साल की बाढ़ से वीरान हो गया तीसराम की मड़ैया

पुष्पेंद्र भदौरिया, अमृतपुर : यह है तीसराम की मड़ैया गांव। हालांकि अब इसे गांव कहना अतिशयोक्ति होगा। अब गांव के नाम पर यहां बस चंद झोपड़ियां ही बची हैं। यहां के बाशिदे साल दर साल बाढ़ की तबाही और प्रशासन की बेरुखी से लाचार होकर आखिर गांव छोड़ कर चले गए हैं।

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कभी यहां हंसता खेलता गांव बसता था। यहां भी कहानियों के गांव की तरह पनघट पर पानी भरने को महिलाओं की भीड़ जुटती थी। बच्चों की किलकारियां गूंजती थी। लगभग एक हजार की आबादी वाले गांव में अब मात्र चंद झोपड़ियां ही यहां बची है। साल दर साल बाढ़ कटान करती रही और लोगों के घर और जमीन गंगा में समाती चली गई। तटबंध की मांग करते करते ग्रामीण आखिर सर छुपाने के आशियाने की मांग तक पर आ गए, लेकिन जब वह भी मिलता न दिखा तो पुरखों की जमीन को अलविदा कह कर चले गए। अधिकांश ग्रामीण इधर-उधर झोपड़ियां डाल कर रह रहे हैं। बदायूं मार्ग से करीब तीन किलोमीटर दूर गंगा के किनारे बसे गांव तीसराम की मड़ैया को तीन वर्ष पहले आई गंगा की बाढ़ ने बर्बाद कर दिया। गंगा की धार से वर्ष 2017 में गांव के मानसिंह, जगदीश, मिहीलाल, सुरेंद्र, सर्वेश, राजू, रामऔतार, बृजपाल, सूरजपाल, वीरेंद्र, रामदास, अलवर व नरवीर सहित 23 लोगों के पक्के मकान कट गए। पीड़ितों को भूमि आवंटित न हो सकी

तीसराम की मड़ैया के बेघर ग्रामीण भूमि आवंटन करने की मांग करते रहे। पीड़ितों ने अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक की देहरी पर जाकर भूमि के लिए फरियाद की, लेकिन पीड़ितों को भूमि आवंटित नहीं हो सकी। जिससे ग्रामीण खेतों में झोपड़ियां डालकर परिवार सहित गुजर कर रहे हैं। गांव में बच्चों की शिक्षा के लिए वर्ष 2006 में प्राथमिक स्कूल का निर्माण कराया गया। प्राथमिक स्कूल में एक वर्ष से बेघर बृजपाल और राजू परिवार सहित रह रहे थे, लेकिन इस वर्ष गंगा की धार से स्कूल का अधिकांश भवन कट गया है। गांव में मंजीत, रामरहीस, रामकांती व अनार सिंह सहित छह परिवार झोपड़ियों में रह रहे हैं। कहीं और जगह न मिलने से यह लोग गांव नहीं छोड़ पा रहे हैं। 50 वर्ष पहले भी कट गया था गांव

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि तीसराम की मड़ैया गांव करीब 50 वर्ष पहले गंगा की धार से कट चुका है। धीरे-धीरे लोग फिर से यहां आकर बस गए, लेकिन गंगा की धार ने दोबारा भी गांव का अस्तित्व समाप्त कर दिया है। गांव के रामरहीस बताते हैं कि गांव में कुछ परिवार ही बचे है। अधिकांश घर गंगा की धार में कट चुके हैं। बेघर हुए ग्रामीणों को भूमि भी आवंटित नहीं हो सकी। मंजीत बताते हैं कि एसडीएम ने गांव आकर ग्रामीणों भूमि आवंटित करने का भरोसा दिया है। तीसराम की मड़ैया गांव में गंगा की धार से बेघर हुए ग्रामीणों को आर्थिक सहायता दी गई थी। ग्रामीण सड़क के किनारे भूमि चाहते हैं, जबकि सड़क के किनारे ग्राम समाज की भूमि नहीं है। ग्रामीणों को ग्राम समाज की भूमि आवास के लिए आवंटित कर दी जाएगी। - - बृजेंद्र कुमार, उप जिलाधिकारी


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