गांव वालों से तीन गुना ज्यादा झगड़ालू शहर वाले
विजय प्रताप ¨सह, फर्रुखाबाद : सामान्यत: अपराध और आपसी झगड़ों को अशिक्षा से जोड़कर देखा जा
विजय प्रताप ¨सह, फर्रुखाबाद : सामान्यत: अपराध और आपसी झगड़ों को अशिक्षा से जोड़कर देखा जाता है। समाजशास्त्री मानते हैं कि जहां शिक्षा कमजोर होती है वहां अपराध को बल मिलता है लेकिन जिले के आंकड़े तो कुछ और ही बयां कर रहे हैं। यहां साक्षरता के लिहाज से देखा जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी लोग तीन गुना अधिक झगड़ालू हैं। यह चौंकाने वाले परिणाम पुलिस विभाग से सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई लंबित मुकदमों की जानकारी में सामने आया है।
झगड़ों के लिए गांव भले ही बदनाम हो लेकिन आंकड़े शहरियों को ज्यादा झगड़ालू बता रहे हैं। वर्ष 2010 में हुई जनगणना के आधार पर जनपद की आबादी तकरीबन 18.87 लाख है। इसमें शहरी क्षेत्र में 4.31 लाख लोगों के बीच चार थाने हैं, जबकि शेष तकरीबन 14 लाख आबादी के लिए दस थाने हैं। इस तरह से देखा जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में मुकदमे ज्यादा होने चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है। शहरी क्षेत्र की कोतवाली फतेहगढ़, फर्रुखाबाद, मऊदरवाजा व महिला थाने में 583 मुकदमे लंबित हैं। यह वो क्षेत्र हैं जहां का साक्षरता प्रतिशत 66.77 है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र के 10 थानों में लंबित मुकदमों का कुल आंकड़ा 545 ही है। यहां साक्षरता का आंकड़ा महज 57.77 फीसद है। औसतन देखा जाए तो जिले में एक लाख की आबादी पर 60 मुकदमों का आंकड़ा है, जबकि शहरी क्षेत्र में एक लाख आबादी पर तकरीबन 135 मुकदमे दर्ज हो रहे हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा महज 37 मुकदमों का है। थाना कोतवाली - प्रचलित विवेचनाएं
फर्रुखाबाद - 210
फतेहगढ़ - 168
मऊदरवाजा - 179
महिला थाना - 26
कायमगंज - 91
मोहम्मदाबाद - 94
कमालगंज - 65
शमसाबाद - 29
अमृतपुर - 11
राजेपुर - 32
नवागंज - 107
जहानगंज - 16
मेरापुर - 28
कंपिल - 64
कुल - 1120 क्षेत्र - जनसंख्या - विवेचनाएं - प्रतिलाख - साक्षरता
जनपद - 18.87 - 1128 - 59.78 -59.62
नगरीय - 4.31 - 583 - 135.27 -66.77
ग्रामीण - 14.56 - 545 - 37.43 -57.77 समाजशास्त्री कहते हैं
नगरीय क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में रिश्ते अधिक प्रत्यक्ष होते हैं। लोग पीढि़यों के संबंधों से उपजे रिश्तों के लिहाज को काफी हद तक कायम रखते हैं। इसके विपरीत नगरीय क्षेत्र में बसने वाले अधिकांश लोगों में इसका अभाव होता है। एक दूसरा पक्ष शहरी युवाओं में बेराजगारी का भी है। पढ़े लिखे नौजवान अपेक्षित जीवन स्तर के अनुरूप रोजगार न मिलने पर भटक जाते हैं और अपराध की राह पर चल पड़ते हैं। बेरोजगारी से उपजी हताशा उन्हें अधिक आक्रामक बनाती है। अपराध को शिक्षा से जोड़कर देखने के बजाए उसे अन्य सामाजिक-आर्थिक पहलुओं के आधार पर परखना अधिक समीचीन होगा।
प्रोफेसर एमएच सिद्दीकी, समाजशास्त्री