.ट्रेन बंद है, गाड़ी भेजो तो आ जाएं
लॉकडाउन में बमुश्किल से गांव पहुंचे लोगों को अब रोजगार की चिता सताने लगी है। यह लोग गांव में मजदूरी करने को विवश हैं। भरण पोषण के लिए आर्थिक संकट हो जाने से अब यह लोग महामारी खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। वहीं कुछ लोग अभी भी वापस जाने को तैयार हैं। नोएडा में फैक्ट्री में काम करने वाले मदनपुर निवासी ग्रामीण के पास फोन आया कि फैक्ट्री शुरू हो गई है साथियों को लेकर वापस आ जाओ। ग्रामीण ने कहा कि अभी ट्रेन बंद है अगर गाड़ी भेज दो वह वापस आ जाएंगे।
संवाद सूत्र, मोहम्मदाबाद : लॉकडाउन में बमुश्किल से गांव पहुंचे लोगों को अब रोजगार की चिता सताने लगी है। यह लोग गांव में मजदूरी करने को विवश हैं। भरण पोषण के लिए आर्थिक संकट हो जाने से अब यह लोग महामारी खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। वहीं कुछ लोग अभी भी वापस जाने को तैयार हैं। नोएडा में फैक्ट्री में काम करने वाले मदनपुर निवासी ग्रामीण के पास फोन आया कि फैक्ट्री शुरू हो गई है, साथियों को लेकर वापस आ जाओ। ग्रामीण ने कहा कि अभी ट्रेन बंद है, अगर गाड़ी भेज दो वह वापस आ जाएंगे।
मदनपुर निवासी अंतराम व उनके रिश्तेदार नोएडा में दुरबीन बनाने की फैक्ट्री में काम करते थे। अंतराम व उनके रिश्तेदार अंकित लॉकडाउन के चलते बमुश्किल गांव पहुंच पाए। दो दिन पूर्व दुरबीन के पार्ट्स बनाने वाली फैक्ट्री से फोन आया कि काम चालू हो गया है, अपने साथियों को लेकर वापस आ जाओ। अंतराम ने कहा कि अभी ट्रेनें बंद हैं, आप गाड़ी भेज दें तो आ जाऊंगा। बताया कि आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। कंपनी में पैसा भी बकाया है। जमा किया हुआ सारा पैसा लॉकडाउन में खर्च हो गया, इसलिए सवारी की व्यवस्था होने पर जाऊंगा।
कान्हेपुर निवासी आशाराम पंजाब के लुधियाना में साइकिल पार्ट्स बनाने वाले फैक्ट्री में काम करते थे। कोरोना के चलते घर आ गए। गांव में परिवार के भरण पोषण के लिए आर्थिक संकट खड़ा हो गया। उनका कहना है कहना कि वह गांव में मजदूरी करेंगे। अगर फैक्ट्री शुरू भी हो गई तो कोरोना महामारी खत्म होने पर वापस जाएंगे। उनके परिवार के अन्य सदस्यों का कहना है कि गांव में ही रहेंगे, लेकिन पंजाब नहीं जाएंगे।